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________________ २५२ = जैन. महाभारत : J ही कौरवो को मार भगाऊंगी, गौओ को छुड़ा लूंगो । यशस्वी विजेता के नाम से प्रसिद्ध होये ।" 1 " वह रही हो नहीं, नहीं भला यह कैसे अम्भव है ?” V ठिकाना न रहा। क्या मुनकर राजकुमार के ग्राश्चर्य का हजारों वीर एक ओर और तुम अकेली दूसरी ओर } "तुम घोड़ों की रास तो सभालो । की भांति क्षण भर में इस सेना को बींच से ही ܪ * 2 - और तुम वृहन्नला ने कहा । " F = C "नही नही । तुम तो स्वयं ही मर जाओगी और साथ ही मुझे ले मरोगी । ना ऐसी मूर्खता में नही करूंगा। मेरी 'मानो तो विलम्ब न करो, भाग चलो | प्राण है तो सब कुछ है। x वरना ***** 97 2 = 1 "राजकुमार मुझ पर विश्वास करो। मैं तुम्हारा बाल भी बाका न होने दूंगी !" — उगम के वृक्ष के पास पहुच कहा - "राजकुमार ! 'तुम्हारी जय हो करो. इस शमी के वृक्ष पर चढ जाओ । । 'देखों पानी की का कीटती हू ।" - बडौ कठिनाई से, राजकुमार घोड़ों की रास सभालने को तैयार हुआ । तब बृहन्नला ने कहा- "नगर के बाहर जो मशान हैं, उसके पास वाले शमी के वृक्ष की ओर रथ को ले चलो ! 2 1 13 T - और रथ उस ओर तेजी से चल पडा । 1 उधर ग्राचार्य- द्रोण उनकी गतिविधियों को सावधानी से देख रहे थे. उन्हें शंका हो रही थी कि नपुंसक के. वप मे कही अर्जुन न हो। संकेत से यह बात उन्होने भीष्म को भी बता दी... यह चर्चा सुन दुर्योधन कर्ण से बोला - "हमे इस बात से क्या मतलब कि नपुंसक के वेप में कौन है। मान लिया कि अर्जुन है फिर लाभ ही लाभ है। गर्त के अनुसार पाण्डवों को फिर - बारह वर्ष के लिए बनवास भुगतना पडेगा ।" कर वहम्मला ने उत्तर से बस अब एक काम और उपर एक गठरी टगी है,
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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