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जैन. महाभारत :
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ही कौरवो को मार भगाऊंगी, गौओ को छुड़ा लूंगो ।
यशस्वी विजेता के नाम से प्रसिद्ध होये ।"
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वह रही हो
नहीं, नहीं भला यह कैसे अम्भव है ?”
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ठिकाना न रहा। क्या
मुनकर राजकुमार के ग्राश्चर्य का हजारों वीर एक ओर और तुम अकेली दूसरी ओर
} "तुम घोड़ों की रास तो सभालो । की भांति क्षण भर में इस सेना को बींच से ही
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और तुम
वृहन्नला ने कहा । "
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"नही नही । तुम तो स्वयं ही मर जाओगी और साथ ही मुझे ले मरोगी । ना ऐसी मूर्खता में नही करूंगा। मेरी 'मानो तो विलम्ब न करो, भाग चलो | प्राण है तो सब कुछ है।
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वरना
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"राजकुमार मुझ पर विश्वास करो। मैं तुम्हारा बाल भी बाका न होने दूंगी !"
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उगम के वृक्ष के पास पहुच कहा - "राजकुमार ! 'तुम्हारी जय हो करो. इस शमी के वृक्ष पर चढ जाओ ।
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'देखों पानी की का कीटती हू ।"
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बडौ कठिनाई से, राजकुमार घोड़ों की रास सभालने को तैयार हुआ । तब बृहन्नला ने कहा- "नगर के बाहर जो मशान हैं, उसके पास वाले शमी के वृक्ष की ओर रथ को ले चलो ! 2 1
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- और रथ उस ओर तेजी से चल पडा ।
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उधर ग्राचार्य- द्रोण उनकी गतिविधियों को सावधानी से देख रहे थे. उन्हें शंका हो रही थी कि नपुंसक के. वप मे कही अर्जुन न हो। संकेत से यह बात उन्होने भीष्म को भी बता दी...
यह चर्चा सुन दुर्योधन कर्ण से बोला - "हमे इस बात से क्या मतलब कि नपुंसक के वेप में कौन है। मान लिया कि अर्जुन है फिर लाभ ही लाभ है। गर्त के अनुसार पाण्डवों को फिर
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बारह वर्ष के लिए बनवास भुगतना पडेगा ।"
कर वहम्मला ने उत्तर से बस अब एक काम और उपर एक गठरी टगी है,