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जैन महाभारत .
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` “तुम नहीं जानती बृहन्नले ! इस सेना में बड़े बड़े पीर होगे। बड़े बड़े अनुभवी सेनानी होगे और मैं ठहरा अकेला और "अभी बालक । “मुझ में इतनी योग्यता कहां कि इनः कौरवो से पार पा मकू "
'किन्तु तुम तो शत्रुओं से युद्ध करने आये हो, तुम . मत्स्य . देश के भावी राजा हो। सारे देश का भाग्य तुम्ही हो । मत्स्य देश की लाज आज तुम्हारे ही हाथ मे है !"
___ "राजा तो मेरे पिता है-राजकूमार उत्तर ने कहता आर. म्भ किया-और वे ही सेना लेकर मुशर्मा को परास्त करने गए है। सेना भी सारी उनके ही साथ है। फिर भला मैं अकेला इन असख्य शत्रुओं से कैसे लडू ? .- - - - -
बृहन्नला बोली- राजकुमार । महल में तो तुम ही डीगे हांक रहे थे। बिना कुछ आगा पीछा सोचे मुझे माथ लेकर युद्ध के लिए चल पड़े और प्रतिज्ञा करके रथ पर बैठे थे। नगर के लोग तुम्हारे ही भरोसे पर हैं। सौरन्ध्री ने मेरी प्रशसा करदी और तुम जल्दी से तैयार होगए मैं तुम्हारी वीरता पूर्ण बातो को सुनकर तुम्हारे साथ चलने को तैयार होगई। अब यदि हम गाए छुडाए बिना वापिस लौट जायेगे तो लोग हमारी हसी उडायग इस लिए मैं तो लौटने को तैयार हू नहीं। तुम घबराते क्यो हो। इट कर लड़ो।"
बहन्नला मे घोडो के रस्से ढीले कर दिए थे। ग्ध वड वेग मे जा रहा था। बहन्नला ने उसे रोकने की कोशिश नहा की और शत्रु सेना के निकट पहुंच गया। यह देख उत्तर काना
और घबरा गया। उसने सोचा कि मौत के मुहाने पर आगया । ... "तुम ग्थ रोकती क्यो नही ?" - ...
"पथ नो शत्रुओं की मेना मे घम कर केगा"...
न
- "नहीं, नहीं, यह मेरे बमको रोग नही । मैं नहीं लड़गा। मैं जान दूझकर मौत के मुंह में नहीं कूदगा।'