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* अठारहवां परिच्छेद * .
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वृहन्नला रण योद्धा के रूप में
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बृहन्नला को सारथी बनाकर राजकुमार उत्तर जब नगर से. चला तो उस का मन उत्साह से भरा था वह बार बार कहता-"रथ तेजी मे चलाओ। देखो जिधर कौरव सेना गौए भगाए ले जा रही है, उसी ओर भगाओ रथ को "
राजकुमार का आदेश पाते ही वृहन्नला ने घोड़ो की बाग ढीली करदी और घोडे बडे वेग से भागने लगे। हवा से बाते करते हुए अश्त्र तीव्र गति से राजकुमार को कौरव सेना की ओर ले जा रहे थे। राजकुमार उत्साह के मारे रथ मे बैठा बैठा ही उछल उछल कर कौरव सेना को देखने का प्रयत्न कर रहा था। चलते चलते दूर कौरवो की सेना दिखाई देने लगी। धूल उड रही थी जो पृथ्वी से उठ कर आकाश को स्पर्श कर रही थी। उस धूल के आवरण के पीछे विशाल सागर की भांति चारो ओर कौरवो की विशाल सेना खडी थी। रोजकूमार ने तो अपने मस्ि ताक मे कौरव सेना की यह कल्पना की थी कि कुछ व्यक्ति होग जो झुण्ड बनाए हुए गोए भगा ले जा रहे होगे। परन्तु वहा ता वह विगाल सेना थी जिसका संचालन भीम, द्रोण, कृप, कण और दुर्योधन जैसे महारथी कर रहे थे। देख कर उत्तर के रोगट खड़े होगए। कहां उसकी कल्पना और कहा यह वास्तविकता उसे कंपकंपी होने लगी। वह सम्भल न सका। सामन ५ हजारो अश्य सवार, रथ सवार, गज सवार और पैदल वार,