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दुर्योधन से टक्कर
भी वह सभी के सामने नाचने लगा। स्त्रियो की हसी रोके न इकती थी। परन्तु जब महल से बाहर आकर उस ने घोड़ो को रथ मे जोता तो वह एक कुशल सारथी प्रतीत हुआ। राजकुमार उत्तर जव रथ मे आकर बैठा तो राजकुमारी ने कहा- "भैया ! मत्स्य राज की लाज अब तुम्हारे हाथ है।"
उत्तर मे बृहन्नला ने कहा-"विश्वास रक्खो कि युद्ध में राजकुमार की विजय अवश्य होगी। और शो के अस्त्र शस्त्र हरण करके रनिवास की स्त्रियो को पुरस्कार के रूप में दे दिए जायेंगे."
राजकुमार ने इस घोषणा का अपनी गौरवमयी मुस्कान से समर्थन किया और वृहन्नला ने रथ हाक दिया। जैसे ही घोड़ो को चलने का इशारा किया और रथ चल पड़ा तो रनिवास की स्त्रियो के आश्चर्य की सीमा न रही। सिंह की ध्वजा फहराता रथं बड़ी शान से कौरव सेना का सामना करने चल पड़ा। उस
समय बृहन्नला की कुशलता, चपलता तथा निपुणता देखकर सभी , उसकी मुक्त कण्ठ से प्रशसा करने लगे।
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