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जैन महाभारत
"हा, हा तुम जानो तो सही।' . . . .
तो फिर मुझे कोई बढिया सी साढी तो दिलवा दीजिए।" * 'माढी क्यो?"
कौरव वीरो ३ सोमने जाना है। उन में राजे महाराज वहां होगे राजकुमार होगे। उन के सामने इन साधारण कपड़ो मे जाऊगी तो लाज की मारी मर न जाऊगी। कोई क्या कहेंगा कि राजा विराट के महल मे-रहती है और कपडे तक. .... "
द्रौपदी (सौरन्ध्री) ने वात बीच ही मे काट दी- "बृहन्नला।' सारथी वन कर जाना है, अथवा नाचने ? कुछ सोच कर ता वात करो." __"हाय राम | मारथी बनूगी तो राजकुमार ही की तो। फिर यह कपड़े क्या लजायेगे नहीं।"
"बृहन्नले । बात क्यो बनाती हो। कैपड तो वहीं पहनी ना, “जो अर्जुन की सारथी बन कर पहनती थी। देखो ! अर्व परिहास अच्छा नही । विलम्ब न करो।"-द्रौपदी बोली। __ . "तो फिर आप यो क्यो नही कहती कि मुझे अर्जुन की सारथी का भेप धरता हे।" -
और क्या.. .. ..." ...
कवच लोया गया और राजकुमार ने सोत्साह उसे दिया। . बृहन्नला के वेप मे अर्जुन नाटक करता हो उसे उल्टी पोर से पहनने लगा। देख कर सभी स्त्रियाँ खिल खिला कर हसं पडी। किसी ने कहा-"फिर तो वृहन्नला ने राजकुमार को जिता दिया समझो। यह क्या वहां घोड हांकगी। जिसे कवच पहनना भा नहीं आता।"
उस समय द्रौपदी को अर्जुन पर बडा त्रोध आया। और अर्जन ने कान टवा कर कवच ठीक प्रकार पहन लिया। परन्तु