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दुर्योधन से टक्कर
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.. "तुम अब जवान हो। किसी भी दिन तुम्हे शामन की
बागडोर सम्भालनी पड़ सकती है, इस लिए युद्ध मे जाओ, और - अपनी तलवार के जौहर दिखा कर कीति तथा यश प्राप्त करो।'
जब किसी को वीर कहने लगो तो उसे भी अपने बारे मे भ्रम होने लगता है। फिर उत्तर तो अपने को वीर समझता ही था। यह उसका पहला अवसर था कि अकेला युद्ध के लिए तैयार हो, लाडकपन के उत्साह तथा चचलता ते जोर .. मारा और वह तैयार हो गया !.. . . .'
राजकुमारी उत्तरा ने रनिवाम से जाकर बृहन्नला से कहा - "वृहन्नला । मेरे पिता की सम्पत्ति और मत्स्य देश वासियो .की गौग्रो को कौरव सेनाए लूट लिए जा रही हैं दुष्टो ने ऐसे समय पर पाक्रमण किया है कि जब राजा नगर मे नही है। मेरे भैया उत्तर उन दुप्टो को मार भगाने के लिए युद्ध करने जाने को तैयार है, पर उन्हें कोई माग्थी नहीं मिल रहा.। मौरन्ध्री कहती है कि तुम्हे अस्त्र शस्त्र चलाना पाता है और तुम अर्जुन का रथ हाक चुकी हो, तो तुम्ही राजकुमार उत्तर का रथ हाक ले जानो न?"
' "वाह राजकुमारी जी । -बृहन्नला रूपी अर्जुन ने कहा -- पाप भी बहुप्रो से चोर मरवाने जैसी बाते करती है। कहा मैं और कहा सारथी बनना। श्राप मेरा वध करवाना चाहती है तो अपने ग्राप मिर काट डालिए। पर मुझ कौरव वीगे की तलवार मे काटने का दण्ट न दीजिए। ग्रोह । जिम समय युद्ध मे धनुषो की टंकार सुनाई देगी। हाथी घोडो की चिंघ द गजेगी, मेरी छाती पाट जायेगी। मैं तो बिना मारे ही मर जाऊगी। हाय । उम नमय तो मेरे शव को कोई ठिकाने लगाने वाला भी हागा। गजन माग जी । मैं मग्राम में नहीं जाऊगी।"
बहानला को कृत्रिम घबराहट के भावो को व्यन मी नाही बान ने गजधमार्ग का विश्वास न टिगा। मने कहा"वहानला वात बनाने की चेष्टा नमारी। ऐने नाद समय में नो यदि तुम पाम न प्रायोगी, तो तुम्हारी विद्या और गोग्यता पा