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जैन महाभारत.
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तो इस मे आश्चर्य की क्या बात है ? क्या में बीर विराट की सन्तान नही हूं ।”
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“भैया ! मुझे प्राज तुम्हारे मुख से यह बात सुनकर कितना हर्ष हो रहा है, बस मैं ही जानती हूं। तुम विजयी होकर लौटो मेरी यही हार्दिक कामना है ।"
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उत्तरे ! विजय तो मेरी निश्चित हैं पर मैं जाऊ तो कैसेकोई · सारथी तो है ही नही ।"
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"भैया ! मैं तुम्हे यही शुभ सवाद सुनाने आई थी "क्या ?"
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"सारथी मिल गया और वह भी अर्जुन का " आश्चर्यपूर्वक उत्तर ने पूछा - " कौन है वह ?" कहा है
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"यह हमारी वृहन्नला है ना । यह अर्जुन का रथ हावा करती थी । इमे अर्जुन ने धनुर्विद्या भी सिखाई है | तुम्हारे सारथी का काम देगी ।"
बस यह
अपनी बनी बनाई धाक को चोट पहुचने के भय से राजकुमार उत्तर ने कहा - " उत्तरे । तुम भी कैसी मूर्खता की बात करती हो। कहा बृहन्नला नपुंसक और कहाँ युद्ध रथ का मारथी । अरे तुम ने भाग तो नही खा ली तनिक सोचो तो कि क्या अर्जुन को यही मिली थी रथ हाकने को ?"
"नही भैया । मौरन्ध्री कहती है अर्जुन इसे बहुत स्नेह करते थे। तुम युद्ध मे जाना चाहो तो बृहन्नलों को अपना मारी बना लो। न जाना चाहो तो दूसरी बात है ।"
उत्तरा की उस बात मे राजकुमार उत्तर ने अपनी बात बनाए उसने के लिए कहा- "नही ! मुझे तो कोई आपत्ति नहीं बृहन्नला यदि वास्तव मे रथ हाक सके । तो मेरे साथ चले ।"