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दुर्योधन से टक्कर
उस समय द्रौपदी भी रनिवास की अन्य स्त्रियों के साथ खडी सारी बातें सुन रही थी। उसने राजकुमारी उत्तरा के पास जाकर कहा -“राजकन्ये । देश पर विपदा आई हुई है। ग्वाले और कृषक घबराये हए राजकूमार के आगे दुहाई मचा रहे हैं कि कौरवों की सेना उत्तर की ओर से नगर पर आक्रमण कर रही है। और मत्स्य देश की सैकडो हजारों गाए लूट ली है। इस समय महाराज दक्षिण की ओर मुशर्मा से युद्ध करने गए हैं ! राजकुमार
देश की रक्षा के लिए युद्ध करने को तैयार है, किन्तु कोई सुयोग्य - सारथी नहीं मिलता। इसी से उनका जाना अटका हुआ है।"
"तो इस में मैं क्या कर सकती हूं?"
"प्रापकी वृहन्नला रथ चलाना जानती है। जब मैं पाण्डवो के रनिवास में काम किया करती थी तो उस समय मैंने सुना था कि वृहन्नला कभी कभी अर्जुन का रथ हाक लेती है। यह भी सुना था कि अर्जुन ने उसे धनुर्विद्या भी सिखाई है। इस लिए श्राप अभी बृहन्नला को प्राज्ञा दे दे कि राजकुमार उत्तर की मारथी बनकर रणांगण मे जाकर कौरव सेना को रोके।"
~~दौपदी के मुख मे यह बात सुन कर राजकुमारी के प्रार
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. दोपदी कामु
है ना की सीमा न रही।
"मौरन्ध्री ! क्या वृहन्नला इतनी गुणवती है ? साश्चर्य है." __ "और जब वह युद्ध में जाकर अपने कमाल दिवायेगी तो नापको और भी अधिक आश्चर्य होगा: अर्जुन इसी कारण तो बृहन्नला का बहुत आदर करते थे।"
"कहीं तू झूठ ही तो नही कह रही ?" 'क्या आपने मेरे मुग्व मे आज तक कोई असत्य नुना?" राजकुमारी निम्नर हो गई।
उसने अपने भाई के पास जाकर कहा-या। मैंने मन . सिनम कोरव मेनाओ का संहार करने जा रहे हो।"