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जैन महाभारत
और क्या पता कौरव सेना तबाही मचाती हुई उस समय तक राजधानी तक भी पहुंच जाय । आप हमारे राजकुमार हैं भावी राजा है । इस अवसर पर आप ही हमारे एक मात्र रक्षक हैं ।"
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जिस समय ग्वाले और कृषक अपनी दुख भरी गाथा सुना रहे थे, कितने ही नगरवासी वहा आगए थे और रनिवास की स्त्रिया ऊपर खडी २ सारी बाते सुन रही थी । राजकुमार भला अपने को कायर कहलाने को कब तैयार हो सकता था. उसने जोश मे आकर कहा - " घबराने की कोई बात नही है । यदि महाराज नही तो क्या हुआ मैं तो हूं। यदि मेरा रथ हाकने वाला कोई सारथी मिल जाये तो मैं अकेला ही जाकर शत्रु सेना के ढात खट्टे कर दूगा और एक २ गाय उन दुष्टो के फदे से छुडा लाऊगा । ऐसा कमाल का युद्ध करूगा कि लोग भी विस्मित होकर देखते रह जायेगे | कहेंगे — ' कही यह अर्जुन तो नही है' मैं महाराज विराट की सन्तान हू । मेरी भुजाम्रो मे क्षत्रिय रक्त दौड़ रहा है।"
ग्वाले और कृषक राजकुमार उत्तर की इस उत्साह पूर्ण वान को सुन कर वडे प्रसन्न हुए । उन्होने हाथ जोड कर गद गद कण्ठ से कहा - "धन्य हो राजकुसार । ग्राप वास्तव मे वीर सन्तान हैं । ग्रापके रहते मत्स्य देश वासियो को भला किस का भय ? बस कृपा कर जल्दी ही चले चलिए । "
" अरे ! तुम बड़े मूर्ख हो । बात नही समझे ? मैं कह रहा हू कि एक सारथी का प्रबन्ध करदो । यदि रण स्थल मे रथ हाकने का अनुभव रखने वाला कोई सारथी मिल जाय तो में अभी इसी समय चल सकता हूं । वरना पैदल थोडे ही युद्ध होता है। और ऐसे सारथी सभी महाराज के साथ गए है । ऐसी दशा में तुम्ही बताओ मैं कर क्या सकता हू ?" -- राजकुमार उत्तर ने ग्वाली तथा कृषको के सामने एक उलझन उपस्थित करदी । अव भला बेचारे ग्वाले और कृषक कहा से सारथी लायें । का फैला रह गया । विवशता नेत्रो मे झाकने लगी । उन बेचारो का क्या पता कि राजकुमार के पास सारथी हो या न हो पर बल तथा साहस की बहुत कमी है ।
उनका मुह फैला