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दुर्योधन की चिन्ता
"हा, महाराज ! आप निश्चिन्त हो ।"
"तो क्या तुम्हें विश्वास है कि सुशर्मा को मुह
"हा, हा, सुशर्मा बेचारा किस खेत की मूली है ।"
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यह सुन विराट बड़े प्रसन्न हुए । उनकी प्रान्ता अनुसार चारो वीरो के लिए रथ तैयार होकर ग्रा खडे हुए। अर्जुन की छोड शेष चारो पाण्डव उन पर चढ कर विराट और उसकी सेना सहित सुशर्मा से लडने चले गए।
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राजा सुशर्मा और राजा विराट की सेनाओ मे घोर युद्ध हुआ दोनो श्रोर के असख्य सैनिक खेत रहे । सुशर्मा तथा उसके साथियो ने राजा विराट को घेर लिया और रथ से उतरने पर विवश कर दिया | अन्त मे सुशर्मा ने विराट को कैद करके अपने र्थ पर बिठा लिया और विजय का शख बजाते हुए अपनी छावनी मे चला गया । जब राजा विराट बन्दी बना लिए गए तो उनकी सेना तितर बितर होगई सैनिक प्रा लेकर भागने लगे । यह हाल देख कर युधिष्ठिर भीम को ग्राज्ञा देते हुए बोले- 'भीम' श्रव तुम्हे जी लगा कर लडना होगा । लापरवाही से काम नही चलेगा। अभी हो विराट को छुड़ा लाना होगा। तितर बितर हो रही सेना को एकत्रित करना होगा और फिर अपने बाहुबल से मुशर्मा का हर्ष चूर्ण करना होगा ।'
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चाता की आज्ञा मान कर भीम सेन रथ पर को मेना पर बाणों की बौछार करने लगा। लड़ाई के बाद भीम ने विराट को छुटा लिया
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भीमसेन को तो ज्येष्ठ भ्राता के प्रदेश की देरी थी। अभी युधिष्ठिर की बात पूर्ण भी न होने पाई यो कि भीमसेन दीड कर एक भारी वृक्ष के पास गया और उसे उखाड़ने लगा । युधिष्ठिर ने तुरन्त जाकर उसे रोका और कहा यदि तुम सदा का भाति पेड उडते तथा सिंह की सी गर्जना करने लगे तो शत्रु तुम्हे तुरन्त पहचान लेगा। इस लिए और लोगों की ही भांति रथ पर = बैठे हुए धनुष बाण के सहारे लडना ठीक होगा ।"
से ही शर्मा थोड़ी देर की और ग