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दुर्योधन की चिन्ता
उन्हे 'अपनो आंखों से देख कर भी कोई पहचान न सकेगा। अतः इस बात को ही ध्यान में रख कर हमे विद्वान, सेवक, सिद्ध पुरुष अथवा उन अन्य लोगो से, जो कि उन्हे पहचानते हैं, ढूढवाना चाहिए।"
___ दुर्योधन महाराज युधिष्ठिर की प्रगसा से चिडता था, उस ने कहा-"गुरुवर ! आप तो पाण्डवों को न जाने क्या समझते हैं। 'पाप मुझे पूर्ण प्रयेलें कर लेने दीजिए, जब मेरे गुप्तचर उन्हे खोज निकालेंगे और वे अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार पुन १२ वर्ष के लिए बनो में भटकने चले जायेंगे तब अपि का भ्रम टूटे गा " .
द्रोणाचार्य मौन रह गए। उसी समय दुर्योवन ने भीग्म पितामह की ओर देख कर कहा-"पितामह ! आप भी तो अपना मत दीजिए। पाण्डवो की खोज कैसे की जाय । अव उनके अज्ञात वास के दिन समाप्त हो रहे है। यदि गीन ही कोई उपाय न किया गया तो पाण्डव इस दाव मे वच निकले गे और फिर युद्ध ठानदेगे ।"
पितामह बोले-“पाण्डवों की प्रगमा मुनना तुम नहीं चाहते। अतः मैं उनकी शक्ति का वखान नहीं करता। हा, इतना अवश्य कहता हूँ कि जहा धर्मराज तथा उनके शुभ प्रकृति के भ्राता होगे, उस देश मे समृद्धि का राज्य होगा, वहा उत्तरोत्तर उन्नति हो रही होगी। धन धान्य की वाहल्यता हो गई होगी और वह राज्य मभी प्रकार के प्रातकों में शून्य होगा।"
"इस का तो यह अर्थ हया कि हम पहले उन देश की खोज कर जिसमें गत दस ग्यारह मास के भीतर समद्धि का माम्राज्य हुया हो" दुर्योधन बोला। .. "दीपक जहां जलेगा, वहां प्रकाग होगा. और जहां प्रयाग है वहीं दीपक को खोज लो।" पितामह बोले।
दुर्योधन ने कहा-"पितामह । श्राप तो हमे कोई नीया