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दुर्योधन की चिन्ता
है या मर गए। कुछ समझ मे नही पाता कि वे किधर निकल गए।" -उस गुप्तचरे मे खेद पूर्वक कहा।
__"गाव मे नही, शहरों मे नही, पहाडो पर नही, जगलों __ मे नहीं तो फिर वे कहाँ निकल भागे। उन्हे जमीन खा गई या
प्रास्मान निगल गया? नहीं, नही तुम मूर्ख हो। तुम ने ठीक प्रकार देखा ही नही। वरना वे सूई तो है नही कि कही पत्तो या राख मे दुबके पड़े रहे। तुम सब नमक हराम हो।"-दुर्योधन ने
गर्ज कर कहा।
उसी समय एक और गुप्तचर पाया।
दुर्योधन ने उसकी ओर टेढी नजर डाल कर कहा-"हा, तुम लो! तुम ने भी कुछ किया या नही ?" ___"महाराज ! मैने समस्त साधु सन्तो के उपाश्रय देखे । विद्वानो के आश्रमों में खोज की। पर पाण्डव कही दिखाई न दिए और जब मुझे विश्वास हो गया कि पाण्डव इस धरती पर है हो नही तो वापिस चला पाया ।"-गुप्तचर ने कहा ।
अभी दुर्योधन उसकी बात पर टिप्पणी भी नही कर पाया था कि एक दूत ने आकर कहा-"महाराज मत्स्य देश से जो हमारे गुप्तचर आये है उन्होने बताया है कि मत्स्य का सेनापति कीचक
किसी गधर्व के हाथो वो रहस्य पूर्ण ढंग से मारा गया। और उस ' के बाद कीचक के सारे भाई भी मार डाले गए।"
इस समाचार से दरवार मे उपस्थित सभी लोग विम्मित रह गए। विगतराज सुशर्मा समाचार सुन कर उछल पड़ा। उस ने सन्तोप की सांस लेने हए कहा-"मोह कितना शुभ समाचार ' है। आज मेरे हदय को गाति मिली। कोनक मार डाला गया ' तो मेरी छाती पर रणखी एक भारी शिला उतर गई। मत्स्य देव १ को मनानो ने कई बार हमारे ऊपर ग्राममण किए और यमब
प्रारमण दुष्ट कीचक के कारण ही हए। कीचक ने मेरे बन्धु