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* सोलहवां परिच्छेद *
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दुर्योधन की चिन्ता
张晓华老年医*****圣经
दुर्योधन विचार मग्न बैठे थे। उस के पास ही उस समय भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य, भिगर्त देश के राजा और दुर्योधन के भाई भी उपस्थित थे। विचार इस बात पर हो रहा था कि पाण्डवो का पता कैसे लगाया जाय।।
एक गुप्तचर ने प्रवेश किया। दुर्योधन शीघ्रता से पूछ बैठा"वोलो ! क्या समाचार लाये ? कुछ पता चला पाण्डवा का?"
वह सिर नीचा कर के खड़ा हो गया। - "कुछ कहो भी कही सुराग लगा?"-दुर्योधन ने उत्सुकता से पूछा।
"महाराज । मैं और मेरे साथियों ने कई देशो मे-खोज की। पहाहो की गुफापो मे, ऊचे ऊचे शिखरो पर, जगलो मे, जनता की भीड़ो मे, मेलो मे ग्रामो तथा नगरो म, जगलियो और खत, मजदूरी किमानो ग्रादि मे तुढा पर पाण्डवोका कही पता न चला। उनके इन्द्रसेन आदि सारथि द्वारका पुरी पहुंचे है, उन से भी पता चलाया। पर यह पता न लग सका कि वे कहां गए। जावित