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जैन महाभारत
"क्या बात है ?"
'उप...... ........कोचक मारे गए।" उस ने कापते हुए कहा ।
सुन कर विराट भी कांप उठे। स्वय कुछ न पूछ सके। कक ने पूछा-"कैसे मारे गए उपकीचक ? किस ने मारा
उन्हे ?
"महाराज ! श्मशान भूमि में जब सौरन्नी को कीचक के शव के माथ चिता पर रख कर आग लगानी चाही। उसी समय कोई गधर्व वहाँ पहुचा और उसने सभी उपकीचको को मार डाला!" दूत ने कहा।
कक रूपी युधिष्ठिर समझ गए कि वह गधर्व कौन हो सकता है। फिर भी कृत्रिम आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा - "हैं-क्या ऐसा हो गया-यह तो वडा बुरा हुआ।"
विराट के मुख से कुछ भी न निकला। उनकी आखों के सामने तो महानाग की कल्पना आ गई।
सौरन्ध्री ! हम तुम्हारी सेवा से बड़े प्रसन्न है। तुम वास्तव मे बड़ी ही बुद्धि मति सन्नारी हो ।" रानी मुदेष्णा ने कहा।
द्रौपदी हाथ जोड़ कर बोली-"पाप मुझ से सन्तुष्ट हैं यह मेरे लिए बड़ी सौभाग्य की बात है।"
"परन्तु मष्ट न होना। अब महाराज को तुम्हारी सेवामा की आवश्यकता नहीं रही। मुझे खेद है कि अब मैं तुम्हारी सेवामा से वचित रहूंगी।".-रानी बोली।
ऐसी क्या त्रुटि हुई मुझ मे ?" द्रौपदी ने विस्मित हा