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कीचक बध
गंधर्वो मे से एक भी काम न आया।"
"इस चडेल को भौकने दो जी ! लगायो ग्राग। हम ने वहुत धुरंबर गधर्व देखे है।" एक उपकोचक ने इतना कहा और आग लगानी चाही।
उसी समय श्मशान भूमि के एक कोने से आवाज़ आई"ठहरो ! अभी आग न लगाना ।"
देखा तो एक वडे वृक्ष को कधे पर रक्खे हुए एक भीमकाय , व्यक्ति चला आ रहा है। उसे देखते ही उपकीचक सन्न रह गए। काटो ती शरीर में रक्त नही। गला सूख गया। हाथ और पैर कापने लगे। उस आगन्तुक के शरीर और कन्धे पर रक्खे वृक्ष को देख कर उन्होने समझा कि हो न हो यही वह गधर्व है जिसे सौरन्ध्री पुकार रही थी।
आते ही उस वीर ने देखते ही देखते सभी उपकीचको को मार डाला। उन मे से किसी का साहम न हुआ कि उसका मुकाबला करता। द्रौपदी के उल्लास का ठिकाना न रहा ।
बात यह थी कि वह वीर भीमसेन था। जो उपकीचकों से पहले ही श्मशान भूमि मे प्रा छुपा था ।
उपकीचकों को मार कर द्रौपदी को भीमसेन ने नगर को भेज दिया और स्वय दूसरे रास्ते से महल में चला गया।
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विराट चिन्ता मग्न बैठे थे। एक दून ने प्रवेश करते हुए प्रणाम किया और हकलाते हुए कुछ कहना चाहा।
विराटे नरेग ने उसकी और देखा। वे समझ गए कि दाल मे कुछ काला है। पूछ बैठे--"गहो, कहो क्या बात
"महाराज गजब हो गया।"