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________________ { कीचक वध कर दिया । कीचक की पुतलियां बाहर निकल आई। उसी समय जबकि कीचक अन्तिम सासे गिन रहा था, वह वीर वोला - "दुष्ट कीचक | तेरे पापाचार का दण्ड देने के लिए मैं आया था। याद रख भीम के ससार मे रहते - किसी की शक्ति नही जो जिसे तू सौरन्ध्री उस सन्नारी की लाज से खिलवाड कर सके, समझता है ।" तो वह वीर था भीमसेन । वह भीमसेन जिस के बाहु बल पर महाराजाधिराज युधिष्ठिर और माता कुन्ती को बहुत ही अभिमान था । २०१ भीमसेन ने उस दुष्ट की ऐसी गति बनादी कि उसका एक गोलाकार मास पिंड सा बन गया। फिर द्रौपदी से विदा लेकर भीमसेन रसोई घर मे चला गया और आराम से सो रहा । इधर द्रौपदी ने नृत्य शाला के रखवालो को जगाया और बोली- ' तुम्हारा सेनापति दुष्ट कीचक कामांध होकर प्रतिदिन मुझे तग किया करता था । ग्राज वह मुझ से बलात्कार करने श्राया था। मेरे पति के भ्राता गधर्व ने अनायास ही यहां पहुंच कर उस दुष्ट को दण्डित किया। जाओ देखो तुम्हारे सेनापति की क्या गति हुई । व्यभिचारी, मदान्ध और अत्याचारियो की यह दशा होती है । देखो तुम्हारे सेनापति वहा मृत पड़े | हैं ।" सुनते ही रखवाले काप उठे। उन्हो ने जाकर देखा कि नहीं पर मैनापति नही, बल्कि खून से लथ पथ एक मास पिड पड़ा था । x X X X X X X कीचक के भाई उपकीचक कहलाते थे । नृत्य शाला के पहरेदारो ने कीचक की मृत्यु का समाचार उपकीचकों को दिया । यह ऐसा समाचार था कि उपकीचको को मुनते ही वडा ग्राघात लगा पर उन्हें तुरन्त ही विश्वास न हुआ कि मसार में कोई ऐसी
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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