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________________ कीचक वध देख कर द्रौपदी समल गई और भीमसेन को सचेत करते हुए बोली - "नही नही ग्राको मे कोई ऐसा कार्य मत कर बैठना 'जिम से कोई नई विपत्ति आने का भय हो । उनावली मे कोई काम कर बैठना ठीक नही ।" "तो फिर ?" "तुम्हे सर्व प्रथम यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि मेरे इस प्रकार मिलने को रहस्य मे ही रखना होगा। किसी से भी इसका जिक्र न हो । दूसरे कोई ऐसा उपाय करना होगा कि कीचक का वध भी हो जाय पर गुप्त रूप मे । किसी को कानो कान पता न चले कीचक का वध इस लिए आवश्यक है कि किस ने उसे मारा। कि वह दुष्ट अपनी नीचता से बाज न आयेगा और समय पाकर फिर अपना कुत्सित प्रस्ताव करेगा । करने का प्रयत्न करेगा । परन्तु इस का यह भो तो अर्थ नही कि तुम उस पापी को दण्डित करते करते स्वय ही विपत्ति मे फस जाश्रो ?" - द्रोपदी संम्भल कर बोली | अवसर पाकर बलात्कार " तो कोई उपाय ही सोचो।" "हा तुम भी विचार करो ।" और फिर दोनो विचार मग्न हो गए। दोनों सोचने लगे । सोच विचार के उपरान्त यह निश्चय पाया कि कीचक बहुत को धोखे से राजा की नृत्यशाला के किसी एकान्त स्थान मे बुला लिया जाय और वही उसका काम तमाम कर दिया जाय । X X X - X " x X दूसरे दिन प्रातः काल अनायास ही दुरात्मा कीचक का पूर्व योजित योजना के आधार पर सौरन्ध्री स्पी गामना हो गया। द्रोपदी ने उस दुष्ट से वन निकलने की कोई चेष्टा न को । कीचक देवा ! मेरा प्रभाव | मैंने तुम्हे भरी में निफ्ट पहन कर कहा सभा में विराट के सामने ही लात मार कर गिरा दिया, तिमी को तुम समझती थी कि विराट की तक करने का साहस न हुग्रा X
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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