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- . .काचक वध
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१८५. . .
का प्रभाव मेरे लिए वडा मगलमय होगा ।",
सौरन्नी ने अपने मन मे उठे घणा एव क्रोध के तूफान को रोक कर कहा- 'मुझे महारानी जी ने सोमरस लेने के लिए यहा . भेजा है। कृपया कलश भरवा दीजिए। उन्हे प्यास सता रही .
"और मुझे जो तुम्हारे सौदर्य की प्यास सता रही है, क्या तुम्हे उसका तनिक सा भी ध्यान नहीं। इतनी कठोर मत बनो, मृग नयनी !"-कीचक बोला।।
"घर पर आये शत्रु का भी अपमान नही किया करते। क्या वह रीति भी भूल गए । कामान्य होकर असम्य मत बनो। सौरन्ध्री वोली ।
__ “मैं तुम से सभ्यता की शिक्षा नही लेना चाहता। मुझे तो प्रेम की तृप्ति की भिक्षा चाहिए।" - "सेनापति ! आप राज कुल के है और मै ठहरी एक नीच - दासी। फिर आप मुझे क्यो चाहने लगे? यह अधर्म करने पर. श्राप क्यों तुले हुए है। मैं पर-नारी है। यदि आप ने मेरा स्पर्श
भी किया तो आप का सर्वनाश हो जायेगा। स्मरण रखिये कि ' में एक गधर्व की पत्नी हैं। वे क्रोध मे पागए तो पापका प्राण । ही लेकर छोड़ेंगे।"-द्रोपदी ने पुन. उसे सावधान किया। ... "कल्याणी | तुम जो भी हो, मेरे लिये रानी हो। मैं तुम्हारे प्रम के लिए प्राण तक न्योछावर कर सकता है। हाँ बस मुझे एक वार तृप्त कर दो। मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग समान वैभव के द्वार खोल
दूगा। मैं तुम्हारी इच्छा पर अपना सब कुछ होम करने को प्रस्तुत .. रहूगा। मेरा प्रेम ऊपरी नहीं है, इसका सम्बन्ध मेरी आत्मा से है। यदि तुम मेरी हो जाओ तो फिर गधर्व तो क्या ससार की को शक्ति मेरे नाश का कारण नही बन सकती। प्रिय रानी। आला मुझे जीवन दान दो।" कीचक ने फिर वही बेसूरी रागिनी
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"मैं तुम्हारी मूर्वता में अपना ममय नांट नहीं करना चाहती