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कीचक बध
वह मुग्ध हो गया और उसे दासी समझ कर आसानी से ही फंसा लेने की आशा करने लगा। सौरन्ध्री के प्रति उसकी आसक्ति की यह दशा हो गई कि सोते जागते, हर समय उस के नेत्रो मे सोरन्ध्री की छवि ही घूमती रहती और वह जैसे तैसे उस से मिलने का प्रयत्न करने लगा ।
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सोरन्ध्री ने की चक के नेत्रो मे तैरते विषयानुराग को भाँप लिया, वह समझ गई कि यह पापी उसे भूखे नेत्रो से क्यों देखता है और उसके नेत्रो मे उमडती वासना की बाढ का क्या परिणाम निकल सकता है, वह उसकी शक्ति को अच्छी तरह समझती थी । अतएव वह सदा ही उस से चौकन्नी रहती, और कोई ऐसा अवसर तू आने देती, जिस से कि कभी एकान्त मे कीचक का सामना हो ।
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पर वह बेचारी दासी जो थी, अपने पति की वर्तमान दशा को भलि प्रकार समझती थी, ग्रत यह जानते हुए भी कि उसका पति इतना महान शक्तिवान है कि कीचक जैसे दुराचारियों को एक ही वार से ठिकाने लगा सकता है, अपने मन मे उठते भय के ज्वार को मन ही मे दफन कर लेतो, ग्रपने पति अर्जुन से कभी कुछ न कहती |
वह सोचती, ग्यारह मास बीत चुके, वस एक मास और शेष है, इस समय को जैसे तैसे अपने सतीत्व की रक्षा करते हुए विता देना ही ठीक है। कही अर्जुन को इम नीच की दुर्भावना का पता चला गया तो वह ग्राग बबूला होकर इस दुष्ट को दण्डित कर डालेगा और न जाने इस के कारण इसका क्या परिणाम निकले. महाराज युधिष्ठिर की प्रतिज्ञा पूरी न हो सकेगी और पुन. उन्हे १२ वर्ष के बिए बनवास मिलेगा ।
परन्तु कीचक की पाप दृष्टि तो उन कुत्तो की भांति सदा उसका पीछा करती रहती थी, जो कि मांग के एक टुकड़े के लिए जीभ निकाले फिरते हैं। सोरन्ध्री रूपी दीप शिसा पर कीचक रूपी पतिगा जल मरने तक को तत्पर था। जहां यह दीप निखा पहुचती वही कीचक की भूखी दृष्टि प्रा जाती । मोर के
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