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जैन महाभारत
तक किसी की बात सहन करनी नहीं जानी । जिसने तुम्हारे स्वाभिमान को चोट पहुचाई उसी को तुम ने अपने क्रोध का शिकार बनाया । तुम ने हिडम्वा सुर का वध किया. एक चक्रा नगरी मे बकासुर का वध कर के नगरवासियों को चिन्ता मुक्त किया। जब भी हम पर विपदा आई तुम अपने असीम बल की पतवार से हमारी नौका पार लगाते रहे । तुम कंसे किसी का सेवक होना स्वीकार करोगे ? और कैसे अपने को काबू में रख सकोगे । वहा तो जिस के आधीन रहोगे उसकी पड़ेगी । आह ! तुम कैसे कैसे किसी का दास रह तुम्हारी है। जिस प्रकार मुश्क और कर रक्खो पर वह छुप नही पाता, इसी दुर्लभ है ।"
अनुचित सभी बाते सहनी छुपा सकोगे ? महावली मुझे सभी से अधिक चिन्ता अगारे को कितना हा छुपा प्रकार तुम्हारा गुप्त रहना
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उचित अपने को सकेगा ?
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कहते कहते युधिष्ठिर का गला रुध गया । उन्होने अपने आंसू पीते हुए कहा- "मुझे क्या पता था कि मेरा प्यारा भोम कभी किसा का दास बनने पर भी विवश होगा ।"
भीम उन्हें धैर्य बन्धाते हुए बोला- "महाराज ! श्राप क्यो अधीर होते है ? मैं परिस्थित को भलि प्रकार समझता हू । वारह मास की ही तो बात है, जसे तैसे व्यतीत कर लूंगा। मेरा विचार है कि मैं राजा विराट का रसोइया बन कर रहूंगा। आप जानते ही है कि मै रसोई बनाने मे बडा ही कुशल हू । राजा को ऐसे ऐसे स्वादिष्ट भोजन वना कर खिलाया करूंगी, जो उन्होने कभी खाये न हो । मेरे कार्य से वे प्रसन्न हो जाये गे । जंगल से लकडिया भो ले प्राया करूंगा, इस के अतिरिक्त राजा के यहा कोई पह 'लवान आया करेगा, तो उस से कुश्ती लड़ कर राजा का मन बह आप विश्वास रक्खे कि मैं कभी अपने को प्रकट न होने दूंगा ।"
लाया करूंगा।
जैव कुश्ती लडने की बात युधिष्ठिर ने सुनी तो उनका मन विचलित हो गया; - वे सोचने लगे कि कहीं भीम सेन 'कुश्ती लड़ने "लडने ही में कोई अनर्थ न कर बैठे जिसके कारण कोई और विपति