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पाण्डव दास रूप में
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'हाँ, बिराट राजा से तो मैं भी परिचित हू, वे बड़े ही शक्ति सम्पन्न, धर्म पर चलने वाले, धैर्यवान और सुलझे हुए वयोवृद्ध है, हमे चाहते भी बहुत है। दुर्योधन की बातो मे भी आने वाले नही है । इस लिए मेरी भी यही राय है कि उनके यहा ही छुप कर रहा जाय | युधिष्ठिर ने अर्जुन की बात का अनुमोदन करते हुए कहा ।
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"अच्छा. यह तो तय हुआ संमभों, पर यह भी तो सोचना हैं कि हम लोग वहां किस वेष मे रहेंगे और उनका कौनसा काम केरेंगे ?" - अर्जुन ने प्रश्न उठाया और यह सोच कर उस का जी भैरे प्रायो कि जिन धर्मराज युधिष्ठिर ने सम्राट पद प्राप्त किया था, * ही अंब विराट के सेवक' 'या दास वन कर रहेगे । 'और' जिन धर्मराज को छल कपट छू तक भी नहीं गया, उन्हें ही छद्म वेष में रह कर नौकरी करनी पडेगी ?
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कुछ देर विचार करने के उपरान्त युधिष्ठिर वोले -"लो भाई ! मैने अपने लिए तो सोच लिया। मै तो महाराज विराट से प्रार्थना करूंगा कि वे मुझे अपने दरवारी काम के लिए रख लें । मैं सन्यासी का सा वेष बना कर केक के नाम से रहा करूंगा । राजा के साथ में चौपड खेला करुगा और इस प्रकार उनका मन बहलाया करूगा । चोपड खेलने के अतिरिक्त मैं राज पण्डित का कम भी कर लूंगा। ज्योतिष शकुन, नीति यादि शस्त्रों तथा जो कुछ ज्ञान मुझे है. उस से राजा को हर प्रकार में प्रसन्न रखू गा । साथ ही सभा में राजा की मेवा टहल भी कर लूंगा। कह दूंगा कि राजा युधिष्ठिर का मै मित्र बन चुका हू। मै इस प्रकार रहूगा कि विराट को कोई सन्देह भी नहीं हो पायेगा और दुर्योधन के. गुप्तचर भी न समझ पायेंगे कि वास्तव में मैं कौन हू । लोग बताओ कि क्या क्या काम करोगे : "
श्रव तुम
युधिष्ठिर की बात सुन कर सभी अपने अपने सम्बन्ध मे मोचने लगे। कुछ देरी तक सभी विचार मग्न रहे पूर्ण शांति व्याप्त रही, तभी शांति भग करते हुए युधिप्टिर बोले- "या 4 भीम ! तुम बताओ कि कौन सा काम करोगे ? तुम ने तो लान
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