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________________ १५२ जैन महाभारतः तेंरा साहस हो तो रोक ।" "देखो ! करने पर भी पानी पिया था, वह मृत पानी पीना जानते हैं | तुम्हारे भाइयो ने मना पड़े हैं । तुम भी ऐसी भूल मत करो। " - आवाज आई 1 - : ま भीम की आखे 'लाल हो गई, वह बोला - "अच्छा त मेरे भ्राताओं के हत्यारे तुम्ही हो । छुप क्यो रहे हो, कायर ! तुम्हे अपनी शक्ति पर तनिक सा भी अभिमान है तो सामने ग्रानो," E कोई सामने नही आया । तव भीम ने कहा- "तो फिर मैं जल पीता हू । शक्ति हो तो आकर रोक ।" भीम ने पानी पिया और वह भी तट पर आकर बेहोश होकर गिर पडा । 1 4 जब चारों' में से एक भी नं लौटा, तो युधिष्ठिर समभ गए कि जरूर मेरे भाई किसी सक्ट मे फस गए हैं । इसी लिए वे भाइयो की सहायता के लिए चल पड े - 1 - जलाशय के पास आये तो चारो को मृत समान देख कर उन के नेत्रो से गंगा-यमुना वह निकली। वे कभी सहदेव के शरीर को टटोलते तो कभी श्रर्जुन के । कभी नकुल के पास बैठकर रोते तो कभी भीम के । बैं भीम के शरीर से लिपट कर बोले - "भैया "भीम तुम ने कैसी कैसी: प्रतिज्ञाएं की थी । क्या वे ग्रव सव निष्फल हो जायेंगी । बऩवास के समाप्त होते होते क्या तुम्हारा जीवन भी समाप्त हो गया । देवता की बाते भी ग्राखिर झूठी ही निकली।" हाय व किसके बल पर मैं गर्व करूगा ? किस की गदा के बल पर मैं दुष्टो को चुनोती दूगा . फिर वे अर्जुन के शरीर से लिपट कर बिलख बिलख कर रोने लगे -- "अर्जुन ! हाय आज तुम भी मुझे ग्रकेला छोड़ गए ।, हाय श्रव में द्रौपदी को कैसे मुह दिखाऊंगा ? यह तुम्हारा गाण्डीव ग्रव कौन उठायेगा ?" - वे नकुल और सहदेव से लिपट कर भी बच्चो को भाति
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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