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________________ ४ 1 पाण्डव बच गए १५१ ने अर्जुन को भेजा | अपने दो भाईयो को जलाशय के तत्पर मृतावस्था मे देखा तो वह फूट फूट कर रोने लगा। उसकी छाती शोक से फटी सी जाती थी। कुछ देर बाद वह उठा, पानी पीने के लिएवढा । तभी आवाज़ आई - " ठहरो । इम जलाशय पर मेरा अधिकार है । पहले नेरे प्रश्नो का उत्तर दो.. ....... " अर्जुन ने गरजकर कहा - " अच्छा तो तुम ही हो मेरे भाईयो के हत्यारे । दुष्ट सामने श्रा । पाण्डवो पर हाथ उठाने का मज़ा अभी चखाता हू " अर्जुन ने गर्जना को - "कौन है ? शक्ति है तो सामने आ । दूसरी ओर से ठहाका मार कर हसने की आवाज़ आई । क्रुद्ध ग्रर्जुन ने उसी समय गाण्डीव द्वारा शब्द वेधी वाण चलाने आरम्भ कर दिए । पर ठहाके की आवाज ग्राती ही रही । छुपा हुआ क्यो है, तब अर्जुन ने सोचा कि पहले पानी पी लूं, फिर इस की खबर लूगा । वह ज्यो ही पानी पोकर बाहर श्राया तट पर आते ही मूर्च्छित होकर गिर पडा । जब अर्जुन को गए हुए भी बहुत देरी हो गई तो यह देखने के लिए कि माजरा क्या है ? यह सब कहा खो गए, भीम श्राया । जलाशय पर तीनो को मृतावस्था मे देखा तो भ्राताओ से लिपट लिपट कर रोने लगा । और फिर कडक कर बोला'किसने मेरे भ्राताओं की हत्या की है । सामने आये। मैं अभी ही उसे बता दूंगा कि पाण्डवो पर हाथ उठाने का मतलब है अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना ।" परन्तु कोई उत्तर न मिला । कोई सामने न आया । प्यास से व्याकुल भीम पानी पीने के लिए वढा । तब फिर वही श्रावाज ग्राई - " ठहरो! इस जलाशय पर मेरा अधिकार है. "A " भीम कडक कर वोला--"अरे दुष्ट ! हम शक्ति द्वारा भी
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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