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पाण्डव बच गए
प्रोर दृष्टि डाली पर पानी कही दिखाई न दिया । दूसरी ओर से नकुल और सहदेव आगए ।
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युधिष्ठिर ने पूछा - "क्यो द्रौपदी कहा है ?”
"महाराज | वह दुष्टं न जाने कहा छुप गया, बहुत ढूंढा • दिखाई ही नही दिया । हमे प्यास बड़े जोरो की लगी है, पानी की खोज मे इधर चले आये ." वे बोले ।
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अर्जुन को वडी निराशा हुई और वह कहने लगा- “भाई "साहब! आप की एक भूल के कारण देखा । हमे कितने दुख भोगने पड़ रहे है । द्रौपदी का हरण हुआ, अब न जाने उसकी खोज मे कहा कहा लडना मरना पडेगा ।"
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महाराजाधिराज थे, के मारे ऐंठ रही है।
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भीम भी बोला - "अधर्म का फल देख लीजिए । और आज वन मे प्यासे बैठे हैं, जिह्वा प्यास और पानी का कही पता ही नही है ।"
नकुल ने कहा - "भ्राता जी । प्यास के मारे हमारा बुरा हाल है, पानी कही नही मिला। मुझे तो ऐसा लगता है कि
• पानी बिना ही में मर जाऊगा ।"
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"श्री बैठ कर भ्राता जी की बुद्धि को रोले ।" भीम बोला ।
युधिष्ठिर समझ गए कि प्यास के मारे सभी बौखला गए है। 'श्रसहनी प्यास ने उनके विश्वास को भी झोड डाला है । 'उन्होंने सहदेव ने कहा- "वृक्ष पर चढ कर देखो तो सही कही जलाशय भी दिखाई देता है अथवा नही ।"
महदेव वृक्ष पर चढा और उसने चारों ओर देख कर बतलाया कि कुछ दूरी पर कुछ ऐसे वृक्ष दिखाई देते हैं जो जलाशय "के तट पर ही होते हैं । कदाचित वही जलाशय है ।
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युधिष्ठिर ने कहा- 'तो फिर तुम जाओ और शीघ्र ही जल लेकर साम्रो।"