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जैन महाभारत
- तभी एक ब्राह्मण, जो पास ही रहता था, चिल्लाता हुया आया-"महाराज ! दौड़ो, हिरण, मेरी अरणी ले भागा।" . युधिष्ठिर ने आश्चर्य चकित होकर पूछा--"हिरण अरणी कैसे ले भागा ?"
"महाराज | मेरी झोपडी के बाहर अरणी की लकडी टंगी थी हिरण आया और उस से अपने शरीर की खुजली मिटाने लगा, और खजली मिटाकर भागने लगा, अरणी उसके सीग मे अटक गई। सीग मैं अरणी अटकने से घबराकर वह बडी तीव्र गति से भागा जा रहा है ।" ब्राह्मण ने कहा।
काठ के चौकोर टुकड़े पर मथनी जैसी दूसरी लकडी से रगड़ कर उन दिनो आग सुलगा लेते थे, उसकों अरणी कहते
थे।
. अर्जुन बोला-"तुझे अपनी अरणी की ही लगी है, द्रौपदी को एक दुष्ट हर ले गया, हमे उसको चिन्ता है।" . ! ___"महाराज मेरी अरणी ......" ब्राह्मण ने फिर पुकार की।
युधिष्ठिर ने अर्जुन को रोकते हुए कहा-"ठीक है, इस ब्राह्मण की सहायता हमारे अतिरिक्त और कौन करेगा। जब ऐसे समय ब्राह्मण ने हमे याद किया है, तो हमे अवश्य ही उस की सहायता करनी चाहिए।"
__फिर स्वय उस हिरण का पीछा करने के लिए दौड़ें। उन्हें दौडता देख कर भीम और अर्जुन भी साथ हो लिए। परन्तु हिरण तो मीग मे अरणी अटक जाने से छलांग लगाता बड़ी तोद्र गति से दौड़ा जा रहा था, अत तीनो भाई पीछे भागते भागते थक गए, और हिरण आंखो से ओझल हो गया।
. . 'तीनों बुरी तरह थक गए थे और प्यान तीनो को बडे जोरा को लग रही थी, वे एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। चारों