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* त्रिदिस परिच्छेद **
पाण्डव बच गए
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दुर्योधन के मन मे कभी कभी फिर भी अपमान का दुख जाग उठता। उस ने कहा- "मुझे गधर्वों द्वारा बन्दी बनाने का इतना दुख नही है जितना अर्जुन द्वारा मुक्त कराये जाने का । है कोई वीर जो मुझे इस दुख से मुक्त करा सके ? जो कोई पाण्डवो को मारकर मेरे इस दुख का निवारण करेगा, उसे मैं अपने राज्य का एक भाग्य दे दूगा ।"
दुर्योधन की इस घोषणा को सुन कर कनकध्वज राजा ने कहा - "महाराज ! मैं इस काम का बीडा उठाता ह और विश्वास दिलाता हू कि ग्राज से सातवे दिन ही पाण्डवो को काल के गाल मे भेज दूगा । यदि मैं यह काम न कर सका तो प्रतिज्ञा करता हूं कि ग्रग्नि कुण्ड में गिरकर भस्म हो जाऊगा ।"
प्रतिज्ञा कर चुकने के पश्चात वह दुष्ट बुद्धि ऋषियों के एक श्राश्रम मे पहुंचा और कृत्या - विद्या को सिद्ध करने लगा । जब इस बात का पता नारद जी को लगा तो उसी समय पाण्डवों के पास गए उन से कनकध्वज की प्रतिज्ञा तथा उसकी पूर्ति के लिए कृत्या विद्या सिद्ध करने की बात सुनाई ।
नारद जी की बात सुनकर युधिष्ठिर ने अपने भाइयो से कहा-"संसार मे एक धर्म ही महान सहयोगी होता है । मनुष्यों
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