________________
पासा पलट गया
तुम्हे पांडवों का राज्य छीन कर दिया और उसे भोगने का समय अाया तुम आत्म हत्या करने की सोचने लगे। पांडवो को नही देखते, कितनी विपदाएं पड रही हैं, तुम्हारे हाथों उनका कितना घोर अपमान हुआ, पर आज भी वे अपनी शक्ति द्वारा राज्य लेने की सोच रहे हैं। यदि आप हत्या करके ही मरना था तो मुझ से यह सब क्यो कराया ? इस से तो अच्छा है कि तुम हस्तिना पुर चलो और पाण्डवो को वन से बुलाकर उनका राज्य उन्हे वापिस कर के चैन से रहो ।"
यह वात सुनते ही दुर्योधन के मन मे पाण्डवो के प्रतिईर्ष्या को अाग जाग उठो, दुर्योधन क्रुद्ध होकर बोला-"नही, पांडव चाहे जो करे अब उन्हे राज्य को ओर मुह भी न करने दिया जाये गा। मैं अपनो इस तलवार की सौगंध खाकर कहता हूं कि पाडौं के सामने कभी सिर न झुकाऊगा।"
इस प्रकार क्रोध ने दुर्योधन के मन मे आत्मग्लानि के उठते ज्वार को समाप्त कर दिया ।