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जैन महाभारत
यह सोचते ही धृतराष्ट्र का हृदय काप उठता।
कभी कभी वे सोचने लगते कि- "भीम और अर्जुन जरूर बदला लेंगे। पर दुर्योधन, दुशासन और शकुनि न जाने क्यो उस तूफान के बारे मे कुछ नही सोचते। वे तो अपनी क्रूरता की पराकाप्टा करने पर उतारू हैं। वे क्यो नही देखते कि भीम जैसा काला नाग उनके वश को ही डस जाने को तैयार है।" - .
_ वे कभी अपनी ही भूल के लिए अपने को धिक्कारते। कभी दुर्योधन को दोषी ठहराते; कभी शकुनि और कर्ण को। वे इसी चक्कर मे चिन्तित रहते। पर वे कोई उपाय ऐसा नही, ढूढ पाते कि जिससे इस द्वेष के दावानल को शान्त किया जा सके।
किन्तु दुर्योधन और शकुनि बहुत प्रसन्न थे और यदि कभी कुछ सोचते भी पाण्डवो को दुख देने के उपाय। एक बार कर्ण और शकुनि दोनो दुर्योधन को चापलूसी की बाते करके शब्दो द्वारा पृथ्वी से उठा कर आकाश पर रख रहे थे, और बारम्बार उसकी बुद्धि की सराहना कर रहे थे कि उसने ऐसा विचित्र उपाय किया जिस से युधिष्ठिर की राज्य-श्री अब उस की तेज और शोभा बढ़ा रही है। तभी दुर्योधन वोला- “तुम लोगो के सहयोग से ही मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। पर मैं पाण्डवों को मुसीवतो' में पडे हुए अपनी पाखो : से देखना चाहता हूं और यह भी चाहता हू कि दुखो से पीडित पाडवो के सामने अपने, सुख भोग और ऐश्वर्य का भी प्रदर्शन करू , जिससे उन्हे अपनी दयनीय दशा का कुछ पता तो चले। झोंपड़ी में रहने वाला पीडित व्यक्ति अपनी पीडा का सही मूल्यांकन तब तक नही कर सकता जब तक वह किसी ऐश्वर्यवान,. वैभवशाली' महल के . निवासी के ठाठ को नही देखता। जब तक शत्रु के कष्टों को हम अपनी आखो से नही देख लेगे तब तक हमारा मानन्द अधूरा ही रह जायेगा । . कोई ऐसा उपाय करना चाहिए कि जिससे हमारी यह इच्छा भी पूर्ण हो जाये।" ---- - --
- शकुनि ने उत्साहित हो कर कहा- "उपाय........? उपाय की इस मे क्या बात है। चलो चले ठाठ बाठ के साथ। यह भी.