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* द्वादस परिच्छेद *
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पांसा पलट गया
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पाण्डवो के पास कितने ही ब्राह्मण और दर्शनाभिलापीं लोग आते रहते थे, जो भी हस्तिनापुर पहुचता, उसी से दुर्योधन पाण्डवो की दशा के सम्बन्ध मे पूछता । जो कोई उससे कहता कि पाण्डव बहुत दुखी है, वडे कष्ट उठा रहे है, दुर्योधन वडा प्रसन्न होता | यह सुन कर उसे सन्तोष मिलता कि पाण्डव त्रसित हैं । वे दुखो मे हैं, असह्य कष्टो का सामना कर रहे हैं ।
धृतराष्ट्र जब किसी से सुनते कि पाण्डव वन में, आधी पानी और धूप मे तकलीफें उठा रहे हैं, वडी यातनाए वे सहन कर रहे है, तो उनके मन मे चिन्ता होने लगती। सोचने लगते कि इस अनर्थ का अन्त क्या होगा ? इस के फल स्वरूप कही मेरे कुल का सर्वनाश न हो जाय ।
रुका हुआ है तो अपना क्रोध रोक किसी न कीसी
की
वह सोचते -- " भीम का क्रोध यदि श्रव तक युधिष्ठिर के समझाने बुझाने से । वह कब तक सकेगा ? सन्तोष की भी तो सीमा होती है । दिन पाण्डवो का क्रोध सन्तोष का वाघ तोड़ कर ऐसा तूफान भाति निकलेगा कि जिसमे सारे कौरव-वश का सफाया हो जायेगा ।
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