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गधों से मित्रता
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रहे। अपनी करतूतो को बन्द करो, वरना मुझे राजा का कर्तव्य - पालन करते हुए कुछ करना होगा।"
विद्युन्माली भला इन्द्र की बात का कोई उचित मूल्य क्यों प्राकता? वह-तो मदान्ध था पाप ने उस की बुद्धि हर ली था । झुध हो कर महल से भाग गया और बाहर रह कर लोगों को लूटने।' खसोटने लगा। कुछ दिनो पश्चात वह खर दूषण के वशजो के साथ स्वर्णपुर चला गया और उनके साथ रहने लगा।
. अब वह खर दूषण के वशजो को साथ ले कर वार बार राज्य पर आक्रमण कर देता है, जनता को लूटता है, लोगो की बहू बेटियो की लाज लूटता है राज्य को क्षति पहुंचाता है और वापिस चला जाता है। राज्य की शाति भग हो गई है, लोग चिन्तित हैं । शत्रुनो ने इन्द्र को मिटा डालने की कसम खा रक्खी है।
___मैं उसी इन्द्र के सेनापति विशालाक्ष का पुत्र हू, नाम है चन्द्र शेखर । मेरे पिता का स्वामी शत्रुदल से सदा ही भयभीत रहता है, मैं उसकी यह दशा न देख सका और एक निमित्तज्ञ से पूछा कि इन्द्र की मुसीबतो को दूर करने वाला, शत्रुदल का सहारक कौन होगा? उस ने मुझे बताया कि जो मनोहर गिरि पर तुम्हे परास्त कर देगा वही इन्द्र की समस्त विपदाओ का अन्त कर सकता है। वही, रथनुपुर की जनता के कष्टों का निवारण करेगा।
बस मैं 'उसी भविष्यवक्ता के वचन पर विश्वास करके भेप वदल कर यहा रहता था, अहो भाग्य ! आज आपके दर्शन हो गए। र आप से प्रार्थना है कि मेरे साथ चलिए और इन्द्र को सकटों से उवारने का प्रयत्न कीजिए क्योकि आप ही इस में समर्थ हैं ।
चन्द्रशेखर की बातो को सुन कर अर्जुन बोला- "यदि मेरे 1 द्वारा कोई व्यक्ति सुखी हो सकता है, तो मैं उसे सुखी देखने के लिए. अपने प्राणो पर भी खेल सकता हूं।
वे दोनो एक वायुयान द्वारा वहा से चल दिए और कुछ ही समय मे विजयार्द्ध महागिरि पर पहुच गए। चन्द्रशेखर ने जा कर