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गंधर्वों से मित्रता
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से भूषित हो दिव्य रूप मे दिखाई दिया | अर्जुन अनायास ही उस के इस विचित्र परिवर्तन को देख कर आश्चर्य चकित रह गया । तुरन्त उसे छोड दिया और इस परिवर्तन के रहस्य पर विचार करने
लगा ।
उसी समय उस ने अर्जुन को पृथ्वी तक मस्तक झुका कर विनय पूर्वक प्रणाम किया और बोला- हे पार्थ। मैं आप की वीरता साहस और असीम बल से बहुत हो प्रभावित हुआ हू | आप के दर्शन करके मुझे जो प्रसन्नता हुई है, उसे कह नही सकता हर्ष के समय आप मुझ से जो चाहे माग ले, आप की प्रत्येक कामना को पूर्ण करके मैं प्रसन्नता अनुभव करूंगा ।
इस
अर्जुन उसकी इस बात को सुन कर चकित ही रह गया, वह उसे बडी विचित्र बात दिखाई दी, सोचने लगा कि इस से क्या मागू ? पता नही कितनी शक्ति है इसके पास ? कहा तक यह मुझे दे सकता है । यह बात उसको समझ मे न आई। तदापि उसने इस अवसर को भी हाथ से न जाने दिया, वह बोला - "यदि श्राप मुझ पर इतने दयालु है, तो कृपया आप मेरे सारथी बन जाइये ।"
"तथास्तु" - वह बोला ।
" आप अपना परिचय तो दे । नाम, धाम और यहां आने का कारण सभी कुछ बताइये ।" अर्जुन ने कहा ।
उत्तर में वह कहने लगा- 'मैं कौन हू, यहां क्यो आया और क्या चाहता हूं ? यह एक बडी कथा है । आप बैठ जाइये और ध्यान पूर्वक सुनिये |
इतना कह कर वह स्वयं भी बैठ गया, अर्जुन बैठ कर उसकी कथा सुनने लगा - उस ने कहना आरम्भ किया- हे पार्थ । इमी भरत क्षेत्र मे विजयार्द्ध नामक एक सुन्दर पहाड़ है उसकी दक्षिण 1 श्रेणी मे इथन पुर नामक एक नगर है, जो कि अपने विशाल कोट
आदि से प्रत्यन्त शोभायमान है । वहाँ का राजा विद्युत प्रभ था वह नमि के वश का एक गुणवान एव सुशील पुप्प था । श्रपने कौशल