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जैन महाभारत
मूर्ति दीर्घ कृष्ण काम भील दूसरी ओर से आ निकला। उस के हाथ में प्रचन्ड धनुष बाण था. नेत्र चडे हुए थे। अर्जुन ने व्यग करते हुए कहा-'हे बनवासी । इस धनुष को क्यो उठाये' फिरता है। यह तो किसी रण वीर के हाथ में ही शोभा देता है। तू क्यों व्यर्थ ही बोझ ढो रहा है ।"
"तो मैं क्या रण वीर नहीं हूं?" क्रुद्ध होकर भील ने पूछा। अर्जुन उसको बात पर हस पड़ा। भील को बहुत क्रोध आया।
"रे युवक ! साहस है तो मेरा सामना कर, मेरा रण कौशल देख, मेरी वीरता का स्वाद चख। क्षण भर मे यम लोक पहुच जायेगा, तब तुझे मेरे शौर्य का ज्ञान होगा ?" भील बोला- और उस ने धनुष पर बाण चढाना प्रारम्भ कर दिया। __अर्जुन ने कहा- "जा, जा क्यो अपनी शामत बुलाता है, अपना, रास्ता नाप।" साना
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परन्तु भील तो अपना धनुष सम्भाल चुका था, अर्जुन को भी गाण्डीव उठाना पड़ा। दोनो में भयकर युद्ध होने लगा। दोनो ओर से चलने वाले तीरों का एक मण्डप सा बन गया। उस समय क्रोध युक्त होकर अर्जुन ने जितने तीर छोडे, भील ने, सभी को निष्फल कर दिया। धनुष युद्ध को व्यर्थ समझ कर अर्जुन ने मल्ल युद्ध आरम्भ कर दिया। भील ने भी अपनी भुजा और ताल ठोक कर सामने आ गया। दोनो परस्पर भिड गए। खूब गुत्थम गुत्था हुए, परन्तु अन्त में इस युद्ध मे भी अर्जुन ने उस भील को परास्त करने का उपाय उसकी समझ न पाया, परन्तु उसने आशा नहीं छोड़ी। वह उदासीन न हुआ, साहस का दामन अभी तक उसने न छोड़ा था। इतने में उसका दाव लग गया और उसने भील के दोनों पैर पकड़ कर चारो ओर चक्र की भाति इस जोर से घुमाया कि वेचारा भील अर्धमृत समान हो गया। अर्जुन उसे पृथ्वी पर पटकना ही चाहता था, जिस से किसो शिला से टकरा कर उस के प्राण पखेरू उड़ जाते, कि अनायास ही वह भील आभूषण आदि