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________________ १२८ जैन महाभारत वस्तुस्थिति के परखने में देर नहीं लगी। नाना-प्रकार से कृतज्ञता प्रगट करने के पश्चात अनुरोधपूर्वक द्रौपदी सहित पांडवो, को राज भवन मे ला कर उनकी सब प्रकार से सेवा: सुश्रुषा करने में राज परिवार ने अपना परम सौभाग्य, समझा। इस प्रकार पांडवों की सेवा प्राप्ति एव वकासुर के उपद्रव निवृति रूप दुहरे-हर्ष मे एक चत्री नगरा आनन्द मे तन्मय था . .. . कोई नहीं चाहता था कि पाडव-यहा से जाये परन्तु युधिष्ठिर ने समझाया कि हम प्रतिज्ञानुसार बन में ही निवास करना-च हते हैं। कौरवो की बिना अनुमति के, कि जित से हम वचन बद्ध है। अधिक समय तक नगर में निवास करना नं तिकदृष्टि से हमारे लिए ही हानिप्रद होगा। और कुछ दिवस "आतिथ्य ग्रहण , कर, समस्त राज परिवार गज कर्मचारी एवं नगर निवासियो की साश्रुपूर्ण विदाई ले द्रौपदी सहित पाडवो ने वन-प्रस्थान किया। . प्रश्न यह है कि बकासुर कौन था ? . .... आइये उम का सक्षिप्त वृतांत सुनाए। वह एक नरेश था, पर अपने मूर्ख और पापी परामर्शदाताओ, सखाओ और मित्रों के सगति से उसमे मास भक्षण का दुर्व्यसन पड़ गया था। एक बार उसकी रसोई के कर्मचारियो ने उस के लिए मास का प्रवन्ध न देख कर स्मशान भूमि से एक मृत बालक का मास ला कर पका दिया। उस दिन के मास का स्वाद भिन्न पा कर उस ने रसोइयां से इसका रहस्य पूछा । जब उसे पता चला कि यह मास बालक का था तो उसनें भविष्य में मनुष्य का मास खाने का ही निश्चय कर लिया। वह वालकों को पकडवा मगवाना और उनका मास खा जाता। उसके इस घोर - अन्याय से प्रजा विद्रोही हो गई। अन्यायी नरेश का सिंहासन पर आरूढ रहना देश के लिए कलक की बात है। उसे सिंहासन च्युत कर देना ही जनता का धर्म है इस सिद्धान्त के अनुसार जनता ने विद्रोह किया और उसे मार भगाया। तव वह एका चक्री नगर के पास की एक गुफा में रहने लगा और इक्के दुक्क व्यक्तियो का वध करके खा जाता। कुछ दिनों पश्चात वह इतना वलिप्ट हो गया कि सारा नगर मिल कर भी उसे न पछाड़ पाया।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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