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बकासुर वध
इधर सिंहासन पर एक निकम्मा शासक विराजमान हुआ, उसकी दुष्टता से कभी भी प्रजा एक हो कर उस दुष्ट बकासुर के विरुद्ध न लड पाती । अकेला एकाचक्री नगर उस पर काबू न पा सकता था ।
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अन्य नगरों की जनता खामोश थी, उसे इस निकम्मे शासक को कुनीतियो के चक्र से ही फुरसत न मिलती थी । और शासक इस बात को समझता था कि यदि नगर से प्रति सप्ताह एक व्यक्ति ले कर बकासुर शत्रुओं से मेरे राज्य की रक्षा करता रहे तो घाटे का सौदा नही है । इस प्रकार वकासुर एकाचक्री नगर के रहने वालो के सिर पर लदा हुआ था । जिस का नाश अन्त मे महाबली भीमसेन के हाथो हुआ 1
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वीर पुरुष अपने पौरुष से प्रजा के दुखो को दूर करने मे कभी नही हिचकते 1 वे दूसरो की रक्षा के लिए अपने को भी संकट में डालने पर हर्ष अनुभव करते हैं ।
- एक विचारक
निकम्मे, अन्यायी और मदांध शासन को उखाड़ फेंकना जनता का कर्त्तव्य है ।
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. क्रूर और जन द्रोही अन्त में विनाश को प्राप्त होते है
मुनि शुक्ल चन्द्र
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