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________________ बकासुर वध .१२७ । नगर पर बकासुर का शव पड़ा देख कर सारे नगर वासी प्रसन्न हो कर उसे देखने एकत्रित हो गए। उसकी भैस सी विशाल काया को क्षत विक्षत देख कर उन्हे बडा आश्चर्य हुआ। वह कौन महाबली है जिसने इस नर पिशाच से हमे अभय प्रदान किया ? यह प्रश्न सब की जिह्वा पर थिरक रहा था। आज किसकी बारी थी इस राक्षस के पास जाने की इस बात की अण्वेषण करते २ नगर निवासी उसी ब्राह्मण के घर पहुंचे। जहाँ पाण्डव भीम के शरीर को मर्दन कर रहे थे। हो रही चेप्टा को और भीम को देखते ही वे पहचान गये कि यही वीर पुरुष है जिसे पक्वान्नादि देकर विदा किया था। और इसी के महापराक्रम से आज समस्त नगर वासियो को जीवन दान प्राप्त हया है। हर्षोन्मत हुए नागरिकों ने पाण्डवों को घेर लिया और नाचने कूदने एव जय जयकारो से आकाश को गुजायमान करने लगे। । युधिष्ठिर भीम आदि पांडव जिस स्थिति से बचे रहने के प्रयत्न मे वेश परिवर्तन रूप पटाक्षेप किये हुए थे दुर्दैव कहिए अथवा सद्भाग्य प्रकृति के एक सकेत ने ही उस छद्यवेश को समाप्त कर दिया । एक चक्री नगर के निवासी अपने उपकारी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापन तो कर रहे थे परन्तु अभी तक उन्हे यह पता नहीं था कि यह ससर्थ पुरुष वास्तव मे है. कौन ? इसी समय वहाँ के युवराज ने कुछ सेवको सहित वहां पदार्पण कियो, जो कि इसी अन्वेषण मे निकला था। कि अन्ततः ऐसा कौन पराक्रमी है जिसने चिरकालीन हमारे मस्तक कलंक को दूर कर यशस्वी बनाया है ? - नगर वासियों के आश्चर्य एवं हर्ष का पारावार उमडपडा जव कि युवराज ने पांडवो को देखते ही पहचान कर राजराजेश्वर युधिष्ठिर धर्मराज की जय! के नारे लगावे एवं झुक २ कर नमस्कार - करना प्रारम्भ कर दिया। बेशक पांडवों ने वेप बदला हुमा था परन्तु राजसूय यक्ष के समय अच्छी प्रकार से परिचय प्राप्त किये हुए युवराज को, पांडवों को पहचानने में देरी न लगी । पाडवों के वनवास - आदि घटना से युवराज पूर्ण परिचित था अतः उसे
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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