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________________ ...................जन महाभारत.. शाति पूर्वक बैठा हुआ दही-खाता-रहा। तब बकासुर को और भी अधिक क्रोध आया और उस ने अधिकाधिक जोर से प्रहार करने प्रारम्भ कर दिये । भीम सेन जब दही खा चुका तब पलंट कर उसकी ओर रुख किया, हस कर बोला- "वकासुर! तू तो थक गया हो गा, कुछ आराम करले।' बकासुर इस 'उपहास से चिड़ गयां और एक सूखे वक्ष को 'उठा कर उस के ऊपर दे मारा। परन्तु भीम सेन विद्युत गति से ऐसा छिटका कि वृक्ष की एक टहनी भी उसके शरीर को न लगी। उलटा बकासुर ही वृक्ष के साय पृथ्वी पर आ गिरा भीम सेन ने दौड़ कर,एक ऐसी ठोकर मारी. कि बकासुर प्रौधे मूह भूमि पर गिर पड़ा। - भीम. ने कहा-'ले अब कुछ देर बागम से सुस्ताले " : बकासुर थक गया -था, कुछ देर तक वह न उठ सका। तब-भीम ने- उसे ठोकर मार कर कहा"अव उठ और सामना कर " -: - . . . . . . . . बकासुर उठा और उस पर आक्रमण करने को बढा पर भीम ने पहले ही प्रहार कर दिया, वह बार बार उस के प्रहारों को रोकने का प्रयत्न करता . पर लड़खडा कर गिर पड़ता। आखिर एक बार भीम ने उसे पकड कर सिर से ऊपर उठा लिया और कहने लगा "बकासुर तू खाता तो बहुत है। इस नगर के कितने ही निरपराधी मनुष्यो को तू खा चुका 1 नगर से पाये हुए 'स्वादिष्ट भोजनो से तू वर्षों से पेट पूजा करता रहा है। पर तुझ मे न वजन है और न बल । बिल्कुल गिद्ध ही रहा। ले अपनी नर्क गति को जा।" -और उसे-इस जोर से एक शिला पर पटखा कि वकासुर के प्राण पखेरु - उड़ गए। उस के मुह से रक्त को धारा वह निकली। - . . . . . . . . . कुछ लोगो का मत है कि भीम ने अपने घुटने से उसकी रीढ की हड्डी तोड दी थी। जो भी हो भीमसेन की मारसे उस नर-भक्षी का प्राणान्त हो गया। तव भीमसेन ने उसे वार वार उलट पलट कर देखा और जब उसे विश्वास हो गया कि बकासुर ससार से चल बसा तो उसने शव को घसीट लिया और नगर के फाटक पर ले जा कर फटक दिया। फिर घर जा कर स्नान किया और भाइयो से सारा वृत्तान्त कह मुनाया। वह आनन्द और गर्व के मारे फूले न समाये
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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