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बकासुर वध
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शेष चारी भाई भीम को हसरत भरी नजरों से देख रहे थे। 1:--- गुफा के निकट - पहुच कर भीमसेन ने देखा कि चारो ओर स्थान स्थान पर. हडिया ही हडिया बिखरी पडो है। रक्त के चिन्ह, - मनुष्यो. व पशुओं के बाल खाल इधर. उधर पडे हुए हैं । चारो ओर बडी दुगध पा रही है। आकाश मे गिद्ध और चीले मण्डरा रही हैं । . .
इस का भी भत्स दृश्य की तनिक भी चिन्ता न करते हुए भीम ने गाड़ी वही खड़ी करदी। और सोचने लगा कि-'गाडी में वड़ा स्वादिष्ट भोजन लगा है ऐसा खाना फिर कहां मिलेगो । बकासुर का वध करके यह भोजन खाना ठीक नहीं होगा, क्योकि मार-धाड में क्या पता यह वस्तुएं बिखर कर खराब हो जायें और किसी काम की भी न रहे। इस लिए यही ठोक है कि इन्हे यहीं सफा चट कर जाऊ .".-- - - - .. --- - - .
उधर-वकासुर मारे भूख के तडप रहा था। जब बहुत देर हो गई तो बड़े क्रोध के साथ गुफा से बाहर आया। देखता क्या है कि एक मोटा सा आदमी बडे आराम से बैठा हुआ भोजन कर रहा है। यह देख कर बकासुर को आँखे लाल हो गई । इतने में भीम सेन की नजर भी उस पर पड़ी। हसते हुए उसे पुकार कर कहा-"बकासुर कहो, चित्त तो प्रसन्न है ।" -
भीम सेन की इस ढिठाई को देख कर बकासुर क्रोध से जले उठा और तेज़ी से भीमसेन पर झपटा उस का शरीर वडा लम्बा चौडा था। सिर और पूछो के बाल भी आग की तरह लाल थे। मुह- इतना चौड़ा-था कि लगता था इस कान से उस कान तक फटा हुमा है। स्वरूप- इतना भयानक था कि देखते ही रोगटे खड़े हो जाये । . . . . . . . .. .. . . 'भीमसेन ने जव चकामुर को अपनी और पाते देखा तो उसको अोर से पीठ फैर ली और कुछ भी परवाह किए बिना खाने म ही लगा रहा बकासुर ने निकट आ कर भीम सेन की पीठ में जार से. एक मुक्का मास : पर जैसे उसे तो कुछ हुआ ही नहीं। वह