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जैन महाभारत
अंग में बिजली सी दोडे गई। जब चारों भाई भिक्षा ले कर लौटे तो उन्होने देखा कि - भीमसेन के मुख पर असाधारण आनन्द को झलक है। युधिष्ठिर ने तत्काल ताड लिया कि भीमसेन को कोई बडा कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होने पूछा- 'पार्ज भीमसेन बड़े प्रसन्न चित्तं प्रतीत होते हो, क्या कारण है ? क्या प्राज तुमने कोई भारी काम करने की ठानी है ?
भीम ने उत्तर में सारी बात कह सुनाई। युधिष्ठिर ने सुन कर कहा- यह तुम कैसा दुस्साहस करने चले हो तुम्हारे हो बलबूते पर तो हम निश्चित रहते हैं। तुम्हारे अपार साहस से हम लाख वे महल से जीवित यहाँ तक चले आये। तुम्हारे ही बल पर हर दुर्योधन से अपना राज्य छीनने की आशा लगाए बैठे है। ऐसे साहसी व बलिष्ट भाई को हम कैसे हाथों से गवा सकते है । गवाने की आप को खूब सूझी ? ..... - .:-- - .., युधिष्ठिर को इन बातों के उत्तर में, भीम वोला- "जिस ब्राह्मण के घर में हम इतने दिनों से प्राश्रय पाये हए है। जिसके घर हम छुपे है, जिसने सदा ही हम से प्रेम प्रदर्शित किया, जब उस के परिवार पर विपत्ति पड़ी तो क्या मनुष्य के नाते हमे उसके दुख को दूर करना नहीं चाहिए? भाई साहब हम उस के उपकारो से उऋण इसी प्रकार हो सकते है । मुझे अपने बल पर गर्व है। मैं अपनी शक्ति को खूब जानता हू । तुम इस बात की चिन्ता मत करो जो वारणावत से आप को यहा उठा लाया, जिस ने हिडिव का वध किया, उस भीम के बारे मे आप को न कुछ चिन्ता करनी चाहिये और न भय । मेरा वकासुर के पास जाना ही कर्तव्य है । ' :
है. इसके पश्चात-नियमानुसार-नगर वासो मदिस, अन्न, दहा आदि खाने पीने की वस्तुए गाडी. मे, रख कर-ले प्राये! उस गाडा में दो काले वैल जुड़े हुए थे। -भीमसेन हसता हुया उछल कर गा 'मे बैठ गया। ब्राह्मण परिवार, मन ही मन उसकी विजय का कामना करने लगा। नगर वासी भी बाजे बजाते हुए कुछ दूर तक उसके , पीछे चले।; एक निश्चित स्थान पर लोग रुक गए और अकेला भीमसेन गाडी दौडाती हा प्रागे चल पडा। उस समय