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बकासुर वध
कर चला जाऊ या स्वय बच कर पत्नी या चालको मे से किसी को भेजूं-यह मुझ से नही हो सकता, अतएव अब, तो मैंने यही निश्चय किया है कि हम सभी, एक साथ उस पिशाच के पास चले जायेंगे।' यही हमारी व्यथा है, आप ने पूछी सो बता दी देव, मला आप इस सकट मे-, हमारी क्या सहायता कर सकते हो। भोम.ने, यह सुन कर मुस्कराते हुए उत्तर दिया-प्रिय वर!; आप इस बात की चिन्ता छोड दें। तुम्हारे स्थान पर उस नर भक्षक वकासुर के पास आज भोजन ले कर मैं चला जाऊंगा ' ' ' ' '
. भीम की बाते सुन कर ब्राह्मण चौंक पड़ा और बोला"आप, भी कैसी बात कहते हैं। श्राप हमारे अतिथि हैं। आपको मृत्यु के मुंह में भेजू , यह कहा का न्याय है;? देव, मुझ से यह नही हो सकता।" . . . . . , , ,
ब्राह्मण को समझाते हुए भीम बोला- द्विज वर ! घबराइये नही। मैं ऐसे मत्र सीखा हुआ हूं कि जिसके बल से इस अत्याचारी पिशाच की एक न चलेगी. उसका भोजन बनने की बजाय उसे ही मार करके लौटूंगा। कई बलिष्ट पिशाचों व राक्षसों को इन हाथों से मारे जाते मेरे भाईयों ने स्वय देखा है...इस लिए आप.चिन्ता न करे। ''हां इस बात का. ध्यान रक्खे कि इस बात की किसी को 'कानो कान खबर न हो, क्योकि यह बात, फैल गई तो फिर मेरी विद्या अभी काम न देगी।" . । भीम को डर था कि यह बात फैल गई तो दुर्योधन और उस के साथियो को पता चल जायेगा कि पाण्डव एक चक्रा नगरी में छुपे हुए हैं। इसी लिए उसने इस बात को गुप्त रखने का आग्रह किया था। ब्राह्मण को जव विश्वास हो गया कि वास्तव मे इस के पास एक विचित्र विद्या है, जिसके वल से वह पिशाच को मार
सकता हैं, और उसका वाल वाका भी न होगा, तो उसने भीम की र बात मान ली। 'इस से ब्राह्मण परिवार की सारी व्यथा का अन्त हो गया और अपने अतिथियो के प्रति उन्हे वड़ी श्रद्धा हो गई।..
। 'भीम को जब निश्चय हो गया वह बकासुर के पास भोजन सामग्री ले कर जा सकता है तो वह फूला न समाया। उसके अंग