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जैन महाभारत
किया । . . . . . . . .
हा, बताने में क्या हर्ज है, ब्राह्मण ने कहना प्रारम्भ कियासुनिये ! इस नगर के निकट ही एक गुफा में एक मनुष्य भक्षी पिशाच रहता है। पिछले तेरह वर्ष से वह नगर वासियों पर भाति भांति के अत्याचार कर रहा है। इस नगर का राजा इतना निकम्मा है कि वह उसके अत्याचारो से नगर वासियों की रक्षा नहीं कर सकता । वह पिशाच पहले जहाँ किसी मनुष्य को पाता मार कर खा जाता था, क्या स्त्रिया, क्या बच्चे, क्या बूढे कोई भी उस के अत्याचार से न बच सके। इस हत्या काण्ड से घबरा कर नगर वासियो ने मिल कर उससे वडी अनुनय-विनय की कि कोई नियम बना । लोगों ने कहा- इस प्रकार मनमानी हत्या करना तुम्हारे भी हक मे ठीक नहीं है। अन्न, दही, मदिरा आदि तरह तरह के खाने की वस्तुए जितनी तुम चाहो उतनी हांडियों में भर कर व बैल गाडियो मे रख कर हम तुम्हारी गुफा मे प्रति सप्ताह पहुंचा दिया करेंगे। गाड़ी हाकने वाले आदमी और बैल भी तुम्हारे खाने के लिए होगे। इन को छोड़ कर अन्य किसी को तंग न करने की कृपा करो।" बकासुर ने लोगो की यह वात-मान ली और तब से इस समझौते के अनुसार यह नियम बना हुआ है कि लोग बारी वारी से एक एक अादमी और खाने पीने की वस्तुएं प्रति सप्ताह उसके पास पहुचा देते है.! - और इसके बदले मे यह बलशाली पिशाच वाहरी शत्रुओं और हिंस्र पशुओं से इस नगर की रक्षा करता है। ..,..', ' ' "जिस किसी ने भी इस मुसीबत से इस नगर को बचाने का प्रयत्न किया, उसको' तथा उसके बाल बच्चों को इस पिशाच ने तत्काल ही मार' कर खा लिया। इस कारण किसी का.साहस नहीं पडता कि कुछ करे। तात ! इस देश का राजा इतना कायर है कि उससे कुछ नहीं होता जिस देश का राजा अपनी जनता की रक्षा नही कर सकता, अच्छा हैं उस देश के नागरिको के वच्चे ही न हों। अव हमारी व्यथा यह है कि इस सप्ताह मे उस नर पिशाच के खाने को आदमी और भोजन भेजने की हमारी, वारी है। , किसी गरीव आदमी को खरीद कर भेजना चाहू तो इतना धन भी मेरे पास .नही है, धेनवाण तो ऐसा ही करते हैं। मैं इन बच्चों को छोड़