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________________ बकासुर वध १२१ - चले गए तो हम विलख विलख कर उसी प्रकार मर जायेगे जिस प्रकार सरिता के सूखने पर मछलियां । मेरा छोटा भाई मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। मेरी मां पर न जाने कितनी विपत्तियो का पहाड़ टूट पड़े। मां मर गई तो बिना माँ के हमारा जीवन दूभर हो जायेगा। अत जिस प्रकार नाव द्वारा नदी को पार किया जाता है इसी प्रकार मुझे उस मनुष्य भक्षी के पास भेज कर आप विपत्ति से पार उतरें। इस से मेरो जीवन भी सार्थक हो जायेगा। और नही तो नेरी ही भलाई को दृष्टि मे रख कर आप मुझे भेन दें।" ' बेटी की बातें सुन कर माता पिता दोनो के आसू. उमड़ आये उन्होने बेटी को अपने कलेजे से लगा लिया और बारम्बार उसका माथा चूम कर अश्रुपात करने लगे लडकी भी रो पड़ी। सवको इस प्रकार रोते देख कर.ब्राह्मण का नन्हा सा बेटा अपनी बड़ी बड़ी आंखो मे माता पिता और वहन को देखते हुए उन्हे समझाने लगा और वारी वारी से उनके पास जाता और अपनी तोतली-बोली में "रोओ मत, रोप्रो मत, मा रोप्रो मत. दीदी रोप्रो मत, पिता जी रोप्रो. मत" कह कर उन्हे चुप कराने लगा और फिर एक सूखी सी लकडी उठा कर बोला- “पिता जी आप मुझे जाने दें, मैं इस लकडी से ही उसको इस ज़ोर से म र डालूगा।" वालक की तोतली वोली और वीरता का अभिनय देख कर इस सकट पूर्ण घडी मे भी संव को हसी आ गई। कुछ क्षण के लिए वे अपना दुख भूल गए। भीम खडा खडा यह सारा दृश्य देख रहा था, उस ने सभी की बातें सुन ली थी। ब्राह्मण परिवार को दुखित होते देख कर उसका मन भर आया। अपनी बात कहने का यह सुन्दर अवसर देख कर वह आगे बढ़ा और बोला- "हे ब्राह्मण देवता ! क्या आप कृपा करके मुझे बता सकते हैं कि आप को इस समय क्या दुख है। मुझ से वन पड़ा-तो मैं आप को उस दुख से छुड़ाने का प्रयत्न अवश्य करूगा। . . . - - "देव ! आप इस सम्बन्ध मे भला क्या कर सकेंगे हताश हो कर ब्राह्मण बोला। ... "फिर भी बत्ताने ही है।" भीम ने आग्रह
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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