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लाख का महल
यही पडी रहूगी।" ..
__समस्त पाण्डव भी प्यास से व्याकुल थे अत भीम के अतिरिक्त सभी बैठ गए मीम जलाशय की खोज मे गया। एक स्थान पर टक्करे खाकर उसे जलागय मिल गया। उसने कमल के पत्तों में पानी भर लिया और जल में अपना दुपट्टा भिगो लिया और लाकर चारो भाइयो तथा द्रौपदी को पानी पिला कर सचेत किया। फिर भीम ने ढारस बधाई। प्रोत्साहन दिया और सती'को कंधे पर उठा लिया। चारों भाई साथ हो लिए। भीम उन्मत्त हाथी की भाति आगे आगे रास्ता साफ़ करता चला, अन्य भाई पीछे पीछे चलते रहे। . गगा तट पर पहुच गए। एक नाव के द्वारा उन्हो ने . गगां पार की और फिर चलने लगे। कभी कभी किसी भाई के थक जाने पर भीम उसे भी उठा लेता और झूमता झामता चलता रहता। चलते चलते रात्रि हो गई सभी भाई और द्रौपदी थक कर सो गए, पर भीम उस बीहड वन मे अकेला ही जागता रहा। हिंसक पशुओं-की-भयानक आवाजे पा रही थी, पर भीम निश्चित हो, कर बैठा था, वह समस्त वृक्षो व पक्षियो को देख कर मन मे सोचता-"वन के यह वृक्ष, - और-पक्षी एक दूसरे की रक्षा करते हुए कैसे मौज से रह रहे हैं, पर धृतराष्ट्र और दुर्योधन मानव होते हुए भी शाति पूर्वक प्रेम भाव से नही रह मकते। उनसे तो यह वृक्ष और-पक्षी ही भले।" - प्रातः हुई फिर वे चल पडे ।
... 'पाँचो भाई और द्रौपदी अनेक विघ्न बाधाओं को झेलते हुए रास्ते पर बढते रहे। वे कभी द्रौपदी को उठा कर चलते, कभी धीरे धीरे बढते। कभी विश्राम करने लगते और कभी आपस मे होड़ लगा कर रास्ता नापते। भूख प्यास से व्याकुल पाण्डव
आगे बढते ही गए। . रास्ते मे उन्हे एक कर्म सिद्धान्त का ज्ञाता मिला और उनकी .परस्पर वाते हुई। पाण्डवों को इस प्रकार वनो मे भटकते हुए देखकर उस निश्चय व्यवहार के ज्ञाता ने उन से पूछा कि 'महलों
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