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जैन महाभारत
की तिथि का समाचार भेज दिया ।
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जहां एक तरफ दुर्योधन पांडवो के विनाश का कुचक्र रख रहा था वहां दूसरी तरफ धर्मात्मा विदुर भी - शान्त न बैठे थे। धृतराष्ट्र के द्वारा पांडवों को वारणावत-निवास -क्रराने आदि का समस्त समाचार उन्हें ज्ञात हो चुका था । और दुर्योधन यह सब सदाशयता से कर रहा होगा.यह उनका हृदय मानने के लिए तैयार न था। अत. चतुर दूतो को वारणावत भेज कर महल में प्रयुक्त की जा रही विशेष सामग्री आदि के द्वारा वह वास्तविकता को समझ चुके थे। अत. वारणावत मे इस महल में ठहराने का दुर्योधन का "क्या आश्य है, और कैसे उससे अपनी रक्षा करनी चाहिये इत्यादि समस्त वाते उन्होने सांकेतिक भाषा में लिख कर अपने विश्वस्त पुरुष को युधिष्ठिर के पास वारणावत मे देने के लिए प्रेषित कर दिया।
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