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दुर्योधन का कुचक्र
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जव कि सूर्य मध्यान्ह को भी लाघ गया है। और समीप मे आने पर दुर्योधन के चेहरे पर उडती हुई हवाइयो और चढी हुई पाखो को देख कर शकुनि स्तम्भित सा रह गया। मामा को अपने समीप मे देख कर दुर्योधन स्मत्स्थि हुआ। और सिंहासन पर बैठते हुए भर्राये हुए कठ से कहने लगा मामा जी या तो इसके प्रतिकार का अपनी विचक्षण बुद्धि से कोई शीघ्र ही मार्ग निकालिये अन्यथा कौरव-कुल की नैया तो मझधार मे ही डूबी हुई समझिये।
क्यो-क्यो राजन, ऐसी अशुभ वाणी क्यों मुह से निकाल रहे हो- बैठते हुए आश्चर्य निमजित शकुनि ने दुर्योधन से कहा।
जब चारो तरफ से अशुभ ही अशुभ देखने और सुनने को मिल रहा है तो आप ही सोचिये मैं कब तक शुभ स्वप्नो की कल्पनाए करताहुआ बैठा रह सकता हू । समय रहते हुए यदि कुछ प्रबन्ध नही किया तो दावानल के धू धू करके चारो तरफ से महल को घेर लेने पर कुया खोदने के उपक्रम से कुछ होने जाने वाला नहीं है। इस तरह कहते हुए प्रतिहारी को भेज कर अपने अभिन्न हृदय कर्ण,' दु शासन आदि को भी दुर्योधन-ने बुला लिया और अपनी व्याकुलता का समस्त रहस्य समझाते हुए बल दिया कि हमे कोई ऐसी युक्ति निकालनी चाहिये कि साप मरे न.लाठी टूटे। .
___ कहते है पाप ही पापी के हृदय. को दहलाता रहता है। इस । समय इस चाडाल चौकडी के हृदय पर अपने कृत्यो के अवश्यम्भावी । कुफल की विभीपिका पूरो रगत दिखला -रही थी। परन्तु रस्सी । जल जाने पर भी जैसे ऐठन सीधी नही वनती, त्यो अपने विनाश,
की काली रात्रि को सन्मुख देखते हुए भी, गाधारी पुत्र शालीनता एव सद्बुद्धि को अब भी सन्मान देने को तैयार नहीं थे।
पाडवो की प्रतिष्ठा और उन्हे सुख प्राप्ति की कल्पना भी दुर्योधन के हृदय मे ववडर, उत्पन्न करने के लिये पर्याप्त आधार थी परन्तु साथ ही साथ अपने अनिष्ट को सम्भावना के तूफान ने उसकी
इपोग्नि को ज्वालामुखी की भान्ति भयकर रूप से धधका दिया । था। जिसके कारण इस समय उसके हृदय से निकलने वाले विचार