________________
* दसम परिच्छेद *
दुर्योधन का कुचक्र
+-
+
चाहे दुर्योधन ने अपने अभिमानी स्वभाव के कारण उस समय पूरी ढिठाई दिखाई थी। परन्तु महर्षि मैत्रेय की भविष्य वाणी ने उसके हृदय को हिला दिया था। देवर्षि नारद के कथन के पश्चात् उसी का अनुमोदन करती हुई वह वाणी रह कर उसके हृदय प्रदेश मे गूज रही थी। जिस से दुर्योधन का खाना पीना। हराम हो गया था। कोमल शय्या पर करवटे बदलते बदलते ही ! प्रभात हो जाती थी परन्तु निद्रा देवी के दर्शन भी नही हो पाते थे।
इसी समय दूत ने आ कर उन सारी घटनायो की सूचना दी जो कि वन मे पाण्डवो के पास घटी थी। अनेक प्रवल विद्याधरो, नरेशो, मुख्यतया त्रिखडाधिपति वासुदेव श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा को सुन कर दुर्योधन का हृदय हाफ उठा उसका रहा सहा आत्म. विश्वास समाप्त हो गया। मौत की भयावह छाया उसकी अाँखा के सामने मडराने लगी। पैरो को पटकता हुमा विक्षिप्तो की सी अवस्था मे वह कब तक महल मे घूमता रहा इसका ध्यान उसे तब आया, जब कि उसके कानो में शकुनि को यह शब्द पडे कि--
दुर्योधन, क्या कारण है तुमने अभी तक भोजन नही किया,