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श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा
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धृष्ट द्युम्न को श्री कृष्ण ने धैर्य बन्धाया। उस समय वह बोला- 'महाराज! अाज अाप ने जो प्रतिज्ञा की है मैं उसे पूर्ण करने के लिये अपना सब कुछ दाव पर लगा दूगा। मैं उसे द्रोणा चार्य को, जो कि मेरे पिता का शत्रु और आजकल कौरवो का सिरक्षक है, मारूगा। भीष्म को शिखण्डी, दुर्योधन को भीमसेन, और सूतपुत्र कर्ण को अर्जुन युद्ध मे यमलोक पहुचायेगे।" ।
श्री कृष्ण ने कहा-“मैं उस समय द्वारिका मे नही था। यदि होता और इस खेल का पता चलता तो चौसर के खेल को ही न होने देता, 'यह खेल धर्म के प्रतिकूल है। इस दुर्व्यसन में जो पडा है, उसका नाश हो गया है। घृतराष्ट्र के बुलाये बिना ही सभा में पहुंच जाता और भीष्म तथा द्रोण जैसे वृद्धजनों को समझा बुझाकर इस नाशकारी खेल को रुकवा देता।"
"आप ऐसे समय द्वारिका से कहा चले गए थे? धृष्ट धुम्न ने पूछा। । जरासिन्ध के मित्र शाल्व ने उस समय जबकि मैं इन्द्रप्रस्थ ।। मे था, द्वारिका का घेरा डाल दिया था। पर बलराम की बुद्धि1 मता और नगर की सुरक्षित स्थिति के कारण वह अपने मन्तव्य । में सफल नहीं हुआ और मेरे द्वारिका पहुचने से पहले ही घेरा - | उठाकर भाग गया था। मैं इन्द्रप्रस्थ से लौट कर उस धुर्त को परास्त करने चला गया था। उसे यमलोक पहुचा कर आ ही रहा
था कि मुझे इस काण्ड की सूचना मिली और मैं तुरन्त बन की ओर है चल पडा।" श्री कृष्ण ने बताया। । इसके पश्चात श्री कृष्ण पाण्डवों से विदा हुए वे सुभद्रा और
अभिमन्यु को अपने साथ लेते गए। धृष्टद्युम्न ने बहुत चाहा कि , वह पाचाल देश चली चले पर वह तैयार न हुई। अतएव द्रौपदी ' के पुत्रों को ले कर धृष्टद्युम्न पाचाल देश की राजधानी को चला
गया।