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जैन महाभारत
और वोले-वहन द्रौपदी ! तुम विश्वास रक्खो कि पाण्डव प्रो उनके सहयोगी इतने शक्ति शाली हैं कि वे तुम्हारे अपमा का बदला अवश्य लेंगे। तुम पर जो भी बीती है, उसे सुन कर मेरा कलेजा फटा सा जाता है । पर एक बात से मुझे सन्तो है कि जो कुछ हुआ है वह अवश्य ही तुम्हारे पूर्व कमों के फल है, दुर्योधन आदि तो निमित्त मात्र है । हा परन्तु उन्हें ने जो कुछ किया वह बैरभाव से ही किया इस लिये उन भी अपने पाप का फल भोगना पड़ेगा। तुम शोक न करो मैं वर देता हू कि उन दुप्टो के विरुद्ध मे पाण्डवों को प्रत्येक सम्भव ओ + उचित सहायता दू गा। यह भी निश्चय मानो कि तुम पुर महलो के वैभव को प्राप्त करोगी। महाराज युधिष्ठिर पुनः अप पद को सुशोभित करेगे। चाहे आकाश टूट कर गिर जाए, चा हिमालय फट कर विखर जाय, चाहे पृथ्वी टुकडे टुकडे हो जाय चाहे सागर सूख जाय पर मेरा यह वचन झूठा नही होगा।"
श्री कृष्ण की इस प्रतिज्ञा मे द्रौपदी का मन खिल उठा उसने अर्जुन की ओर अर्थ पूर्ण दृष्टि से देखा। अर्जुन भी द्रौप को सान्वना देते हुए बोला- "हे पाचाली, श्री कृष्ण का वच झूठा नही होगा। वही होगा जो उन्होंने कहा है। तुम धीर घरों: हमारे साथ वासुदेव है तो फिर हमे किसी प्रकार की चिन नहीं है ।"
वष्ट धुम्न ने अपनी बहन की वातो को सुन कर दुखित । कर कहा-~"हे वहन । मुझे तुम्हारी बाते सुन कर बडी लज्जा । रही है। मेरे रहते मेरी बहन को कोई अपमानित करने । दुस्साहस करे, यह मेरे लिए डूब मरने की बात है।" -" वह अपने आप को धिक्कारने लगा---'धिक्कार है मेरे पौरुप को टूट जाओ ऐ मेरी बलिष्ट भुजाओ टूट जागो, जब तुम अप बहन की रक्षा नहीं कर सकती तो तुम्हारा अस्तित्व व्यर्थ है हे मेरे नेत्रो अच्छा है तुम ज्योति हीन हो जायो, मैं अपनी पार से अपनी बहन के नयनो को सजल कैसे देख ? फूट जागो कानों फूट जायो, अपनी बहन के अपमान की कथा सुनने से अच है कि तुम फूट ही जाओ।"