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श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा
मे लेगे। उन के रक्त से हम पृथ्वी की प्यास बुझावेगे।" ... आगन्तुक राजा जब अपने अपने मन की कह चुके, तो
द्रौपदी श्री कृष्ण से मिली। श्री कृष्ण को अपने सामने देखते ही • उसकी आँखो से सावन भादो की झडी लग गई। अवरुद्ध कण्ठ बडी कठनाई से वह बोली-"मधु सूदन ! मैंने कौरवो के हाथो से जो अपमान सहा है, वह ऐसा है कि कहते हुए ही मेरा कलेजा - फटा सा जा रहा है। उस समय मैं रजुस्वला थी, एक साडी ही पहनी हुई थी। दुष्ट दु शासन ने मेरे केश पकड कर घसीटता हुआ भरी सभा मे मुझे ले गया। कुरु कुल के सभी वृद्ध वहा उपस्थित थे। पर किसी ने इस पाप के विरुद्ध उफ तक नही किया। दुर्योधन की आज्ञा पर उस दुष्ट ने मेरी साडी खीचनी प्रारम्भ की, मुझे भरी सभा मे नगा करने की चेष्टा की, उस समय महाराज युधिष्ठिर ने सिर नीचा कर लिया, धनुषधारी अर्जुन का गाण्डीव
उस समय भूमि पर पडा था, महावलो भीम उस समय चुप खडा , था, मेरा वहा कोई नही रह गया था। वृद्ध जन गरदन झुकाए । बैठे थे। मैं भीष्म और धृतराष्ट्र की बधु हू, पर वे इस बात
को भी भूल - गए थे। पाण्डु नरेश की वधु और पॉचाल नरेश की । बेटी उस समय निस्सहाय व अवला बनो हुई थी। दरिद्र पुरुष
भी होते हैं वे भी अपनी पत्नी के अपमान को सहन नहीं कर । ते, पर मैं विश्व विख्यात धनुषधारी की पत्नी होकर अनाथ सी | विलाप कर रही थी। उस समय यदि काम आया तो मेरा सती
चारित्र। जिस समय से,मुझे यह घोर अपमान सहन करना पड़ा
उस समय से मैं तो यह समझ बैठी हू कि मेरा इस ससार मे कोड । नही है, न पति न परिवार, श्रीहर, और न आप ही। पापी
दुराचारी मेरे साथ प्रत्येक अन्याय कर सकते है। वोलो क्या __ मुझ जैसी अभागिन इस ससार मे और भी कोई होगी ?'
___-कहते कहते द्रौपदी का कोमल होट फडकने लगा, वह बिलख
विलख कर रो रही थी। उस के अश्रुओ की बहती गगा यमुना १ मे श्री कृष्ण की धारता भी बह चली। वे शोक विहल हो गए। । परन्तु समय की नजाकत को समझते हुए उन्हो ने अपने आप को । वहुत सम्भाला और मिष्ट वचनो से द्रौपदी को सान्त्वना देने लगे,