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* नवम परिच्छेद *
श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा -
जब श्री कृष्ण को हस्तिना पुर में हुई घटना की सूचना मिली और उन्हे ज्ञात हुआ कि पाण्डव सपरिवार बनो मे चले गए हैं, सो वे तुरन्त पाण्डवो से मिलने के लिए चल पडे। दूसरी ओर घृष्ट घुम्न भी पांचाल देश से कुरु जगल के वनो की ओर चला।
श्री कृष्ण के साथ राजा कैकेय, भोज और वृष्टि जीत के नेता आदि भी थे। इन सभी का पाण्डवों के साथ बहुत स्नेह था और उन्हे वडी श्रद्धा के साथ देखते थे। अर्जुन के मित्र विद्याधर खेचर भी उनसे मिलने के लिए चले। इस प्रकार क्षत्रिय राजाओ का एक बड़ा दल और अनेक विद्याधर आदि पाण्डवों के आश्रम मे पहुचे।
पाण्डव वड़े हर्ष चित होकर सभी से मिले। दुर्योधन और उसके साथियो की करतूतों का पूरा हाल जब सभी ने सुना तो सभी की खेद हुआ। सभी राजाओं ने एक स्वर से धृतराष्ट्र और उसके वेटों की भर्त्सना की। कितने ही राजा एक स्वर से बोले-- "दुराचारी कौरवों का विनाश हम सबकी खड़ग से होना अवश्यमभावी है। हम इस अन्याय का बदला रण भूमि