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घृतराष्ट्र की चिन्ता
हे राजकुमार शात्रों में कहा है.
तुमंसि नाम सच्चेव जं हंतव्यं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावे अव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं परिया वेयव्वं ति मन्नसि तुमंसि नाम सच्चेव जं परिघेत्तव्यं ति मन्नसि एवं तुमंसि नाम सच्चेव जं उद्ववेयव्यं ति मन्नसि ।।
- अर्थात जब तुम किसी को हनन, आज्ञापन, परिताप, परिग्रह, एवं विनाश योग्य समझते हो तो यह विचार करो कि वह तुम ही हो। उसकी आत्मा और तुम्हारी आत्मा एक सी ही है। जैसे तुम्हे हननादि अप्रिय है, और तुम उससे बचना चाहते हो, उसी प्रकार उसकी आत्मा को भी है। - मुनिवर ने मधुर वाणो मे दुर्योधन को समझाया पर जिद्दी दुर्योधन ने उनकी ओर मुह भी नहीं किया, कुछ बोला भी नही, बल्कि अपनी जाघ पर हाथ ठोकता रहा। और पैर के अगूठे से जमीन कुरेदता मुस्कराता रहा।
दुर्योधन की इस ढिठाई से मुनिवर को बडा खेद हुआ। धृतराष्ट्र ने हाथ जोड़ कर पूछा कि "भगवन ! आप दुर्योधन के भविष्य के सम्बन्ध मे तो कुछ बताइये ।' ___मुनिवर बोले-देवो ने सर्वज्ञ देव से पूछकर जो बताया है, वह मैं कह सकता हूं, वह यह है कि दुर्योधन इस समय जिस जांघ को ठोक रहा है, युद्ध मे भीम अपनी गदा से तोडेगा। और इसी से इसकी मृत्यु होगी।
SALWAY